Book Title: Kundsiddhi Prarambh
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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandir ध्याननःक्रमानलिंगपुराणे त्रिंशइस्लप्रमाणेनमंडपंकटमेववा तथादशहादशहतोचहिदिध्यातनःकमान लिंगपुराणे त्रिंश इस्लाप्रमाणेनमंडपंकूटमेववा तथाष्टाशहरलेनकलाहलेनवापुनरिति ननुहादशहस्तमउपस्यकथमधमत्वचेतिउच्यते दशह स्तापेक्षयामध्यमवंचतुर्दशहनापेक्षयाकनिष्ठत्वं यथैकस्यैवयजमानस्यकुत्रचित गोगावंकुत्रचिन्मुख्यत्वेतहदशहस्तमें उपनवकंडीपक्षेपंचमेखलापक्षेचआचार्याद्यपवेशननसंभवतीतिअवरल्पनेकहमपरिमितेः कुंडैकमेखलापक्षमा वादरणीयःऔचित्यादर्थात्परिमारणमिति कात्यायनोक्लेश्चजनमेपिमंडपेशहरलकुंडनवकपंचमेखलादिपक्षस्यसमावणे दिगंतरालेदिकरंभवेहाचतुष्टयंवेदगांगुलैलन विवहितमध्यवरिष्ठयोः स्याहेदीविभागेनसमा नस्यादिति मंडपमृद्धिकार्यायतोमंत्रमुक्तावल्पा चतुर्विशहलपर्यंत मंडपवृद्धिावानशातपंच एकराच 16 हस्तमारभ्यहात्रिंशइस्नपर्यंतंबहिःकर्मविशेषउक्तासाचात्र विस्तर मयान्नलिरव्यत इति १५अथद्दारमानैवेदीमानंचारख्या नकाह दिमध्येहारचतुष्टयहिहसंभवति तन हारमध्यमोत्तमयोर्मेडपयोः चतुरष्टौगुलदृहिमतमध्यमंडपेचतुरंगुलाट्ट। ट्विःउनमेचाष्टांगुलवृद्धिःकार्यावेदी For Private and Personal Use Only

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