Book Title: Kundsiddhi Prarambh
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________________ Acharya Shri Kailassagasul Gyanmandir www.kobatrm.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कुं-मि- अथचेयाचीनकनावेवाग्रहितारलेषांतोषायापिसमषटभुजेण्डसंवसंतमालिकयाह अथवाचतुर्विंशतिभक्तकुंड मानेसतिस्वी 18 यषष्ट्यधिकशतभागेनहींनैः पंचदशभागैर्मिनोयःकर्कटस्तदुईवेचन्ने उत्तरदिक्तःसकाशातसमै पडिर्भुजैः परस्परलषर संकृतमार्जनेनभवतीतिव्याव्याअथक्षेत्रफलानयनेनवनव्यासेसिभकोषडसेस्युर्भुजाःस्फुटाइतिभुजमान १४ारक्षेत्रमा दक्षिणोतरेखांदत्वाऊर्श्वभुजसंपाततःपूर्वापररेखाइयअधोभुजसंपानावधिदद्यात स्वंततेचतरवयंपरस्परलयंभव ॥अथवा जिनभक्तकुंडमानातिथिभागैः खरखभूपभागहीनामि नकर्कटकोद्भवेतुत्तेविधुदितःसमषभजैः षडखें॥४३॥६॥ नि पूर्वापररेखयो दक्षिणोत्तररेखयासहसंपातश्चतुर्थाशस्वभवनिसैवावाधातन्मानं भुजः१४॥२ स्वावाधाभुज कृपोरंतरमूलप्रजापतःलेवइतिसाधितोलवः १२॥७॥२अयमेवमध्यलवालवेन निघ्नंक सीई।४ मुखे४४ापाईकयरखेड़ेस 1217 इतिजातक्षेत्रफलं 28044 एवमपरस्यापिरवंडस्याउभययोगे 577 इनवयवाधिकतरप्पदोषायमेतबंध रामः जायसिदिश्चेति // 43 // For Private and Personal Use Only

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