Book Title: Kundsiddhi Prarambh
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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir अथपंचकुंडयैककुंडनिवेशनमिंद्रवज्रयाहआणदिक्तचकुंडानिचतुरस्त्रहत्ताईन्नपद्मानिईशदिशिकंउंचतुरस्रवृत्तवानःपचकुंडी निवेशनस्यात्यांचैकमेवकुंडनदापश्चिमउतरेवाईशान्यावास्यादपरंतुचतुरस्रवेद्याः सकाशनानिसाणिकुंडानिसपादेनकरणविं शदंगुलीतरेवावेदीपादोतरेणवेद्याश्चतुर्थाशनमंडपनवकोष्टेलते अष्टसुभागेषुमध्येवाभवत्तीतिव्याख्यानारदीये यत्रोपदिश्यते डेचतुष्कतत्रकर्मणिवेदास्वमर्धचंद्रंचरत्नपद्मनिर्भतथा कुर्यात्कुंडानिचत्वारिपाच्यादिषुविचक्षणः॥पंचमकारयकुंडईशदिग्गोचर) - आशेशकुंडैरिहपंचकुंडीचैकंयदापश्चिमसोमशेववेद्यास पादेनकरेणयहापदी तरेरणखिलकुंडसंख्या // 3 // 6 // हिजेइतिअयंमध्यमःपक्षाकैश्चित पूर्वशयोरितिलिखितंतदसत् सोमशंभी एकंवाशिवाकायांप्रतीच्याकारयेहुधा आचार्या अपिअथचादिशिकंडमुत्तरस्याप्रविध्याचतुरस्त्रमेकमेवेत्ययकनिष्टःपक्षानवग्रहाधिकारेवशिष्टसंहितायाकुंडतन्मध्यभागेत कारयेच्चतरसकवितस्तिहयमाख्यातंतकुंडेसचतुरंगुलमितिवेदीपादीतरत्यत्कानवकुंडानिपंचचेति नारदीये कुंडवेधतरचैवस पादकरसमितमितिकैश्चित्रयोदशीगुलमप्यतरमुक्ततत्रमंडपानुसारेणव्यवस्थेति // 31 // * // ॐ // // * For Private and Personal Use Only

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