Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ १२ ] [ भाचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम कोण्डकुन्दपुर के वासी होने से आपको भी कौण्डकुन्दपुर के प्राचार्य के अर्थ में कौण्डकुन्दाचार्य कहा जाने लगा, जो श्रुतिमधुरता की दृष्टि से कालान्तर में कुन्दकुन्दाचार्य हो गया। यद्यपि 'आचार्य' पद है, तथापि वह आपके नाम के साथ इस प्रकार घुलमिल गया कि वह नाम का ही एक अंग हो गया। इस सन्दर्भ में चन्द्रगिरि पर्वत के शिलालेखों में अनेकों बार समागत निम्नांकित छन्द उल्लेखनीय हैं : "श्रीमन्मुनीन्द्रोत्तमरत्नवर्गा श्रीगौतमाधाप्रभविष्णवस्ते। तत्राम्बूषो सप्तमहद्धियुक्तास्तत्सन्ततौ नन्दिगणे बभूव ॥३॥ श्री पमनन्वीत्यनवधनामा ह्याचार्यशब्दोत्तरकोण्डकुन्दः । द्वितीयमासीवभिधानमुखच्चरित्रसजातसुचारद्धिः ॥४॥' मुनीन्द्रों में श्रेष्ठ प्रभावशाली महद्धिक गौतमादि रत्नों की माकर आचार्यपरम्परा में नन्दिगण में श्रेष्ठ चरित्र के धनी, चारण ऋद्धिधारी 'पद्मनन्दी' नाम के मुनिराज हुए, जिनका दूसरा नाम 'आचार्य' शब्द है अंत में जिसके ऐसा 'कौण्डकुन्द' था अर्थात् 'कुन्दकुन्दाचार्य' था।" उक्त छन्दों में तीन बिन्दु अत्यन्त स्पष्ट हैं : (१) गौतम गणघर के बाद किसी अन्य का उल्लेख न होकर कुन्दकुन्द का ही उल्लेख है, जो दिगम्बर परम्परा में उनके स्थान को सूचित करता है। (२) उन्हें चारणऋद्धि प्राप्त थी। (३) उनका प्रथम नाम 'पद्मनन्दी' था और दूसरा नाम 'कुन्दकुन्दाचार्य' था। 'प्राचार्य' शब्द नाम का ही अंश बन गया था, जो कि 'प्राचार्यशब्दोत्तरकोण्डकुन्दः' पद से अत्यन्त स्पष्ट है। यह भी स्पष्ट है कि यद्यपि यह नाम उनके प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के ' जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, पृष्ठ, ३४, ४३, ५८ एवं ७१

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