Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ २० ] __ [ प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम ____बात इतनी ही नहीं है, उन्होंने अपने मंगलाचरणों में भी उन्हें विशेषरूप से कहीं स्मरण नहीं किया है। क्या कारण है कि जिन तीर्थकर अरहंतदेव के उन्होंने साक्षात् दर्शन किए हों, जिनकी दिव्यध्वनि श्रवण की हो, उन परहंत पद में विराजमान सीमन्धर परमेष्ठी को वे विशेषरूप से नामोल्लेखपूर्वक स्मरण भी न करें। - इसके भी आगे एक बात और भी है कि उन्होंने स्वयं को भगवान महावीर और अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की परम्परा से बुद्धिपूर्वक जोड़ा है। प्रमाणरूप में उनके निम्नांकित कथनों को देखा जा सकता है : "वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुदकेवलीभरिपदं ।' श्रुतकेवलियों द्वारा कहा गया समयसार नामक प्रामृत कहूँगा। वोच्छामि रिणयमसारं केवलिसुदकेवलोभरिण। केवली तथा श्रुतकेवली के द्वारा कथित नियमसार मैं कहूँगा। काकरण णमुक्कारं जिणवरवसहस्स वड्ढमारणस्स । दसरणमग्गं वोच्छामि जहाफम्मं समासेण ॥३ ऋषभदेव आदि तीर्थकर एवं वर्द्धमान अन्तिम तीर्थंकर को नमस्कार कर यथाक्रम संक्षेप में दर्शनमार्ग को कहँगा। वित्ता आयरिए फसायमलवज्जिदे सुद्धे ।। कषायमल से रहित आचार्यदेव को वंदना करके । वीरं विसालनयणं रस्तुप्पलकोमलस्समप्पायं । तिविहेण परमिऊरणं सीलगुरगाणं रिणसामेह ॥५ विशाल हैं नयन जिनके एवं रक्त कमल के समान कोमल हैं चरण जिनके, ऐसे वीर भगवान को मन-वचन-काय से नमस्कार करके शीलगुणों का वर्णन करूँगा। १ समयसार, गाथा १ २ नियमसार, गाथा १ ३ अष्टपाहुड : दर्शनपाहुड, गाथा १ ४ अष्टपाहुड : बोधपाहुड, गाथा १ ५ अष्टपाहुड : शीलपाहुड, गाथा १

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84