Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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चतुर्थ अध्याय
पंचास्तिकायसंग्रह
ग्राचार्य कुन्दकुन्द जैसे समर्थं श्राचार्य द्वारा प्रणीत 'पंचास्तिकाय - सग्रह' नामक यह ग्रन्थ जिन सिद्धान्त और जिन - श्रध्यात्म का प्रवेश द्वार है । इसमें जिनागम में प्रतिपादित द्रव्यव्यवस्था व पदार्थव्यवस्था का संक्षेप में प्राथमिक परिचय दिया गया है ।
जिनागम में प्रतिपादित द्रव्य एवं पदार्थ व्यवस्था की सम्यक् जानकारी बिना जिन-सिद्धान्त और जिन - अध्यात्म में प्रवेश पाना संभव नहीं है; अतः यह 'पंचास्तिकाय संग्रह' नामक ग्रन्थ सर्वप्रथम स्वाध्याय करने योग्य है ।
इसकी रचना भी शिवकुमार महाराज प्रादि संक्षेप रुचि वाले प्राथमिक शिष्यों के लिए ही की गई थी, जैसा कि जयसेनाचार्य के निम्नांकित कथन से स्पष्ट है :
शिवकुमारमहाराजादिसंक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थं
"अथवा विरचिते पंचास्तिकायप्राभृतशास्त्रे ........।'
अथवा शिवकुमार महाराज आदि संक्षेपरुचि वाले शिष्यों को समझाने के लिए विरचित पंचास्तिकायप्राभृत शास्त्र में ........."
महाश्रमण तीर्थंकरदेव की वारणी दिव्यध्वनि या प्रवचन का सार ही इस ग्रन्थ में संक्षेप में गुम्फित किया गया है । अपनी ओर से कुछ भी नहीं कहा गया है ।
१ जयतेनाचार्य कृत पंचास्तिकाय की तात्पर्यवृति नामक टीका का प्रारंभिक अंश

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