Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 73
________________ प्रवचनसार ] [ ७३ इसप्रकार प्राचार्य अमृतचन्द्र के अनुसार श्राचार्य कुन्दकुन्द कृत प्रवचनसार २७५ गाथाओं में समाप्त हो जाता है । इसके बाद प्राचार्य अमृतचन्द्र अपनी तत्त्वदीपिका टीका में परिशिष्ट के रूप में ४७ नयों की चर्चा करते हैं, जो मूलतः पठनीय है । प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत समयसार की आत्मख्याति नामक टीका के अन्त में समागत ४७ शक्तियों एवं प्रवचनसार की तत्त्वदीपिका टीका के अन्त में समागत ४७ नयों का निरूपण आचार्य अमृतचन्द्र की अपनी विशेषता है । इसप्रकार हम देखते हैं कि अपनी अभूतपूर्वं विषयवस्तु एवं प्रौढ़ प्रतिपादन शैली के कारण यह प्रवचनसार परमागम आज भी अद्वितीय है। मोह और क्षोभ से रहित साम्यभावरूप प्रात्मपरिणामों की प्राप्ति का मार्गदर्शक यह प्रवचनसार ग्रन्थ मात्र विद्वानों के अध्ययन की ही वस्तु नहीं है, अपितु इसका गहराई से अध्ययन करना प्रत्येक प्रात्मार्थी का प्राथमिक कर्तव्य है । जैनदर्शन में प्रतिपादित वस्तुव्यवस्था के सम्यक्स्वरूप को जानने के लिए आचार्य कुन्दकुन्द की यह कृति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं अत्यन्त उपयोगी है | जन-जन की वस्तु इस अद्भुत कृति का गहराई से अध्ययन कर मुझ सहित प्रत्येक प्रात्मार्थीजन प्राचार्य कुन्दकुन्द एवं अमृतचन्द्र के समान हो साम्यभाव को प्राप्त हों - इस पावन भावना से विराम लेता हूँ ।

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