Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 77
________________ [ ७७ पंचास्तिकायसंग्रह ] ततस्तत्त्वपरिज्ञानपूर्वेण त्रितयात्मना। प्रोक्ता मार्गेण कल्पारणो मोक्षप्राप्तिरपश्चिमा॥' यहाँ सबसे पहले सूत्रकर्ता आचार्य कुन्दकुन्ददेव ने मूल पदार्थों का पंचास्तिकाय एवं षड्द्रव्य के रूप में निरूपण किया है। इसके बाद दूसरे खण्ड में जीव और अजीव-इन दो की पर्यायों रूप नव पदार्थों की विभिन्न प्रकार की व्यवस्था का प्रतिपादन किया है । इसके बाद दूसरे खण्ड के अन्त में चूलिका के रूप में तत्त्व के परिज्ञानपूर्वक (पंचास्तिकाय, षद्रव्य एवं नवपदार्थों के यथार्थ ज्ञानपूर्वक) त्रयात्मक मार्ग (सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र की एकता) से कल्याणस्वरूप उत्तम मोक्षप्राप्ति कही है।" तात्पर्यवृत्तिकार प्राचार्य जयसेन इस ग्रन्थ को तीन महाअधिकारों में विभक्त करते हैं। प्राचार्य जयसेन द्वारा विभाजित प्रथम महाधिकार तो प्राचार्य अमृतचन्द्र द्वारा विभाजित प्रथम श्रुतस्कन्ध के अनुसार ही है । अमृतचन्द्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध को जयसेनाचार्य ने द्वितीय एवं तृतीय - ऐसे दो महाधिकारों में विभक्त कर दिया है । उसमें भी कोई विशेष बात नहीं है । बात मात्र इतनी ही है कि जिसे अमृतचन्द्र 'मोक्षमार्गप्रपञ्चचूलिका' कहते हैं, उसे ही जयसेनाचार्य तृतीय महा-अधिकार कहते हैं । . प्रथम श्रुतस्कन्ध (प्रथम खण्ड ) या प्रथम महाधिकार में सर्वप्रथम छब्बीस गाथाओं में मंगलाचरण एवं ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा के उपरान्त षद्रव्य एवं पंचास्तिकाय के सामान्य व्याख्यानरूप पीठिका दी गई है। इस पीठिका में जीवादि पांच अस्तिकायों का अस्तित्व और कायत्व जिस सुन्दरता के साथ बताया गया है, वह मूलतः पठनीय है। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यत्व अथवा गुण-पर्यायत्व के कारण अस्तित्व एवं बहुप्रदेशत्व के कारण कायत्व सिद्ध किया गया है। ___ 'पस्तिकाय' शब्द अस्तित्व और कायत्व का द्योतक है। अस्तित्व +कायत्व-अस्तिकाय । इसप्रकार 'अस्तिकाय' शब्द अस्तित्व और ' समयव्याख्या, छन्द ४, ५ व ६

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