Book Title: Kundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 66
________________ ६६ ] .. [ प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंच परमागम (३) चरणानुयोगसूचक चूलिका प्रवचनसार की मूल विषयवस्तु ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन एवं ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकारों में ही समाप्त हो जाती है। इस सन्दर्भ में प्राचार्य जयसेन का निम्नांकित कथन द्रष्टव्य है : "कार्य प्रत्यत्रव ग्रन्थः समाप्त इति ज्ञातव्यम् । कस्मादिति चेत् । 'उपसंपयामि सम्म' इति प्रतिज्ञासमाप्तेः ।' कार्य के अनुसार ग्रन्थ यहीं समाप्त हो जाता है, क्योंकि 'मैं साम्य को प्राप्त करता हूँ'- इस प्रतिज्ञा की समाप्ति यहाँ हो जाती है।" इस अधिकार की टीका आरंभ करते हुए प्राचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं : "प्रथ परेषां चरणानुयोगसूचिका चूलिका। अब दूसरों के लिए चरणानुयोग सूचक चूलिका लिखते हैं ।" इसे वे ग्रन्थ का मूल अंश न मानकर चूलिका मानते हैं । चूलिका शब्द का अर्थ प्राचार्य जयसेन समयसार की तात्पर्यवृत्ति टीका में इसप्रकार देते हैं : "विशेषव्याख्यान, उक्तानुक्तव्याख्यानं, उक्तानुक्त संकीर्णव्याख्यानं चेति त्रिषा चूलिका शब्दस्यार्थो ज्ञातव्यः ।। विशेष का व्याख्यान, उक्त या अनुक्त व्याख्यान अथवा उक्तानुक्त अर्थ का संक्षिप्त व्याख्यान - इसप्रकार 'चूलिका' शब्द का अर्थ उक्त तीन प्रकार से जानना चाहिये।" इसप्रकार हम देखते हैं कि चारित्र के धनी प्राचार्यदेव सम्यग्दर्शन-ज्ञान की निमित्तभूत वस्तु का स्वरूप प्रतिपादित कर शिष्यों को चारित्र धारण करने की प्रेरणा देने के लिए इस अधिकार की रचना करते हैं। प्रवचनसार : तात्पर्यवृत्ति टीका, चारित्राधिकार को पातनिका २ समयसार गाथा ३२१ की तात्पर्यवृत्ति टीका

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