Book Title: Kavyamala Part 7
Author(s): Durgaprasad, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai
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काव्यमाला।
तपस्तीनं तप्तं चरणमपि जीर्ण चिरतरं न चेच्चित्ते भावस्तुषपवनवत्सर्वमफलम् ॥ ८८ ॥
____ अथ वैराग्यप्रक्रमः । यदशुभरजःपाथो हप्तेन्द्रियद्विरदानुशं
कुशलकुसुमोद्यानं माद्यन्मनःकरिशृङ्खला । विरतिरमणीलीलावेश्म स्मरज्वरभेषजं
शिवपथरथस्तद्वैराग्यं विमृश्य भवाभयः ॥ ८९॥ चण्डानिलः स्फुरितमब्दचयं दवार्चि
वृक्षत्र तिमिरमण्डलमर्कबिम्बम् । वज्रं महीध्रनिवहं नयते यथान्तं
वैराग्यमेकमपि कर्म तथा समग्रम् ॥ ९० ॥ नमस्या देवानां चरणवरिवस्या शुभगुरो
स्तपस्या निःसीमक्लमपदमुपास्या गुणवताम् । निषद्यारण्ये स्यात्करणदमविद्या च शिवदा
विरागः क्रूरागःक्षपणनिपुणोऽन्तः स्फुरसि चेत् ॥ ९१ ॥ भोगान्कृष्णभुजंगभोगविषमान्राज्यं रजःसंनिभं
बन्धून्बन्धनिबन्धनानि विषयग्रामं विषान्नोपमम् । भूति भूतिसहोदरां तृणतुलं स्त्रैणं विदित्वा त्यजं.
स्तेष्वासक्तिमनाविलो विलभते मुक्तिं विरक्तः पुमान् ॥ ९२॥ जिनेन्द्रपूजा गुरुपर्युपास्तिः सत्त्वानुकम्पा शुभपात्रदानम् । गुणानुरागः श्रुतिरागमस्य नृजन्मवृक्षस्य फलान्यमूनि ॥ ९३ ॥ त्रिसंध्यं देवा! विरचय चयं प्रापय यशः
श्रियः पात्रे वापं जनय नयमार्ग नय मनः । स्मरक्रोधाद्यारीन्दलय कलय प्राणिषु दयां .
जिनोक्तं सिद्धान्तं शृणु वृणु जवान्मुक्तिकमलाम् ॥ ९४ ।।
१. 'चारित्रम्' इति टीका.
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