Book Title: Kavyamala Part 7
Author(s): Durgaprasad, Vasudev L Shastri
Publisher: Nirnaysagar Yantralaya Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ श्रीमहावीरखामिस्तोत्रम् । १०१ कुसमयरुतमालाभङ्गसंहारवायो कुनयकुवलयालीचूरणे(चूर्णने) मत्तनाग । तव गुणकणगुम्फे मे परीणाममित्थं विमलमपरिहीणं हे महावीर पाहि ॥ २६ ॥ अनयनिबिडे पीडागाढे भयावहदुःसहे विरहविरसे लज्जापुञ्ज रमे भवपञ्जरे । निरयकुहरंगामी हाहं न सिद्धिमहापुरी सरलसरणिं सेवे मूढो गिरं तव वीर हे ।। २७ ।। निरीहं गन्तारं परमभुवि मन्तारमखिलं , निहन्तारं होलाकलिकलहकेलीसारमा भवन्तं नन्तारो नहि खलु निमज्जन्ति भवभी___ महापारावारे मरणभयकल्लोलकलिले ॥ २८ ।। एवं सेवापरिहरिया ) लोलचूलामणीद्ध___ च्छायालीढं खरकिरणभाभिन्नमम्भोरुहं वा । चित्तागारे चरणकमलं ते चिरं धारिणो मे सिद्धावासं बहुभवभयारम्भरीणाय देहि ॥ २९ ॥ इत्थं ते समसंस्कृतस्तवमहं प्रस्तावयामासिवा नाशंसे जिनवीर नेन्द्रपदवीं न प्राज्यराज्यश्रियम् । लीलाभाजि न वल्लभप्रणयिनीवृन्दानि कि त्वर्थये नाथेदं प्रथय प्रसादविशदां दृष्टिं दयालो मयि ॥ ३० ॥ इति श्रीजिनवल्लभसूरिप्रणीतं समसंस्कृतप्राकृतं श्रीमहावीरखामिस्तोत्रम् । - १. जिनवल्लमेति ग्रन्थकर्तुर्नामापि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166