Book Title: Kasaypahudam Part 14
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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प्रस्तावना
करणसम्बन्धी विशेष विचार
आयुकर्ममेंसे नरकायुके बन्धनकरण और उत्कर्षणकरण मिथ्यात्वगुणस्थानमें ही होते हैं । संक्रम करणको छोड़कर शेष पाँच करण, उदय और सत्त्व चौथे गुणस्थान तक होते हैं । तिर्यञ्चायुके बन्धनकरण और उत्कर्षणकरण दूसरे गुणस्थान तक ही होते हैं। संक्रमकरणको छोड़कर शेष पाँच करण, उदय और सत्त्व पांचवें गुणस्थान तक होते हैं। मनुष्यायुके बन्धनकरण और उत्कर्षणकरण चौथे गुणस्थान तक होते हैं। उदीरणाकरण प्रमत्तसंयतगुणस्थान तक होता है। अपकर्षणकरण १३वें गुणस्थान तक होता है। संक्रमकरणके बिना अप्रशस्त उपशामनाकरण, निकाचनाकरण और निधत्तीकरण अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक होते हैं। तथा उदय और सत्त्व अयोगिकेवली गुणस्थान तक होते हैं। तथा देवायुके बन्धनकरण और उत्कर्षणकरण अप्रमत्तगुणस्थान तक होते है। अपकर्षणकरण और सत्त्व उपशान्तकषाय गुणस्थान होते हैं। उदय और उदीरणा असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक होते हैं तथा अप्रशस्त उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण ८वें गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं । इसका भी संक्रमकरण नहीं होता।
साता वेदनीयके बन्धनकरण और अपकर्षणकरण सयोगिकेवली गुणस्थान तक होते हैं। उत्कर्षणकरण सूक्ष्मसाम्यपराय गुणस्थान तक होता है। उदीरणाकरण और संक्रमकरण प्रमत्त संयत गुणस्थान तक होते हैं। उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक होते हैं । उदय और सत्त्व अयोगिकेवली गुण स्थान तक होते हैं । असातावेदनीय के बन्धनकरण, उत्कर्षणकरण और उदीरणाकरण प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होते हैं। संक्रमकरण सूक्ष्मसाम्परायगुस्थान तक होता है । अपकर्षणकरण सयोगिकेवली गुणस्थान तक होता है । उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूर्वकरण के अन्तिम समय तक होते हैं। उदय और सत्त्व अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं।
मोहनीय कर्मके अपवर्तनाकरण और उदीरणाकरण सूक्ष्मसाम्परायमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने तक होते हैं । उदय इसके अन्तिम समय तक होता है । बन्धनकरण उत्कर्षणकरण और संक्रमकरण अनिवृत्तिकरणके विवक्षित स्थान तक होते हैं । अप्रशस्त उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूर्वकरण गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं । तथा सत्त्व उपशान्त मोहके अन्तिम समय तक होता है।
शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मों के अपवर्तनाकरण और उदीरणाकरण क्षीणमोह गुणस्थान में एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने तक होते हैं। उदय और सत्त्व अन्तिम समय तक होते हैं। बन्धनकरण, उत्कर्षणकरण और संक्रमकरण सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान तक होते हैं। उपशमनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूर्वकरण गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं।
नाम और गोत्र कर्मके बन्धनकरण, उत्कर्षणकरण और संक्रमकरण सूक्ष्मसाम्परायगुणथान तक होते हैं। उदीरणा और अकर्षणकरण सयोगकेवली गणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं । उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूर्वकरण गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं । उदय और सत्त्व अयोगकेवलीगणस्थानके अन्तिम समय तक होते हैं । उपशामनाके मेद
उपशामना दो प्रकारकी होती है-सव्याघात उपशामना और निर्व्याघात उपशामना। यदि नपुंसक वेद आदिका उपशम करते समय बीचमें ही मरण हो जाता है तो वह सव्याघात