Book Title: Karma Siddhanta
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 20
________________ कर्म सिद्धान्त २. वस्तु स्वभाव भावात्मक । प्रत्येक वस्त की हीन या अधिक कछ न कछ लम्बाई, चौडाई, मोटाई अर्थात् आकृति अवश्य होती है। परमाणु यद्यपि अविभागी है पर उसकी भी कोई न कोई आकृति अवश्य है, अन्यथा उसके कार्यभूत स्थूल पदार्थों में लम्बाई आदि कहाँ से आती । वस्तु के आकृति-सापेक्ष इस विशेष को उसका स्वक्षेत्र कहते हैं। परमाणु का क्षेत्र सबसे छोटा होता है, क्योंकि इसे तोड़कर और छोटा किया जाना सम्भव नहीं है। एक परमाणु-प्रमाण आकाश के क्षेत्र का नाम 'प्रदेश' है। जैसा कि आगे बताया जायेगा जीव इस प्रकार मापा जाने पर असंख्यात प्रदेशी है। ___यद्यपि वस्तु अपने स्वरूप में सदा अवस्थित रहती है अर्थात् कभी कोई परिवर्तन नहीं करती परन्तु नित्य परिणमन करते रहने के कारण उसकी अवस्थायें सदा बदलती रहती हैं । अर्थात् वह नित्य होते हुए भी अनित्य है । अस्तित्व गुण के कारण नित्य और द्रव्यत्व गुण के कारण अनित्य । इसमें कोई विरोध नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार बालक से बूढ़ा होकर भी वह व्यक्ति वही रहता है अन्य नहीं हो जाता, इसी प्रकार प्रतिक्षण रूपान्तरों को प्राप्त होती हुई भी वस्तु वही रहती है अन्य नहीं हो जाती । परिवर्तनगत वस्तु में आगे पीछे प्रकट होकर उसी में लय हो जाने वाले उसके ये रूप या अवस्थायें उसका कालकृत विशेष होने से, उसका 'स्वकाल' कहलाता है। काल का वह छोटे से छोटा खण्ड जिसका कि आगे खण्ड न किया जा सके 'समय' कहलाता है। जिस प्रकार क्षेत्र की अपेक्षा अविभागी होने से 'प्रदेश' क्षेत्रात्मक यूनिट है, उसी प्रकार काल की अपेक्षा अविभागी होने से 'समय' कालात्मक यूनिट है। यह इतना सूक्ष्म होता है कि एक सेकेण्ड में असंख्यात समय हो सकते हैं। वस्तु का तीसरा विशेष उसका भाव' है । भावं नाम उस वस्तु के गुण या स्वभाव का है, जैसे ज्ञान-स्वभावी होने से जीव के सकल भाव ज्ञानात्मक ही होते हैं, और रसस्वरूप होने के कारण पुद्गल के सकल भाव रसात्मक होते हैं । 'भाव' वस्तु के बड़े या छोटे सम्पूर्ण क्षेत्र या प्रदेशों में व्यापकर रहता है । क्षेत्र तथा काल के यूनिट की भाँति इसका यूनिट एक अविभाग-प्रतिच्छेद' कहलाता है,जो भाव की शक्ति का लघुतम भाग है । ___ अखण्ड वस्तु-सामान्य तो 'द्रव्य' कहलाती है, और ये तीन उसके स्व-विशेष कहे गए हैं। उसकी प्रदेशात्मक आकृति उसका 'स्वक्षेत्र' है, उसकी परिवर्तनशील अवस्थायें उसका 'स्व-काल' है, और उसके लक्षणभूत गुण उसके 'स्व-भाव' कहलाते हैं । इस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव ये चार वस्तु के स्वचतुष्टय माने गए हैं । वस्तु के अपने अंश होने से 'स्व' तथा चार हाने से 'चतुष्टय' हैं । द्रव्य सामान्य है और शेष तीन उसके विशेष, क्षेत्र सामान्य है और प्रदेश उसका विशेष, काल सामान्य है और समय उसका विशेष, भाव सामान्य है और अविभाग-प्रतिच्छेद उसका विशेष। इस प्रकार वस्तु सामान्य विशेषात्मक है। विशेष रहित सामान्य और सामान्य रहित विशेष प्रलाप मात्र है।

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