Book Title: Karma Siddhanta
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 37
________________ ६.कर्म परिचय । १. पुनरावृत्ति, २. कर्म-सामान्य, ३. द्रव्यकर्म भावकर्म, ४. चतुःश्रेणी बन्ध। १. पुनरावृत्ति कर्मका सम्बन्ध क्योंकि वस्तु के परिणमनशील अंश से अर्थात् क्रिया, परिस्पन्द, पर्याय या परिणमन से है, अत: पाठक को इस स्थल पर पूर्वकथित तीनों अधिकारों का स्मरण कर लेना योग्य है, क्योंकि विषय कुछ जटिल है। वहाँ बताया गया है कि पुद्गल व जीव दोनों ही स्वभाव से प्रति समय अपनी अवस्था बदल रहे हैं, जिसे उनका परिणमन कहते हैं। यह परिणमन दो प्रकार का है-द्रव्यात्मक (प्रवेशात्मक) और भावात्मक । द्रव्यात्मक परिणमन को क्रिया व परिस्पंदन कहते हैं और भावात्मक को पर्याय या परिणमन । क्रिया दो प्रकार की है-गति रूप तथा संकोच विकास रूप। पहली पदार्थों के संयोग-वियोग में कारण है और दूसरी उनकी आकृति निर्माण में । पहली का नाम क्रिया है और दूसरी का नाम परिस्पन्दन। पर्याय भी दो प्रकार की है अर्थ व व्यञ्जन । अर्थ-पर्याय भाव या गुण की अवस्था है और व्यञ्जन-पर्याय द्रव्य या क्षेत्र की। अर्थ-पर्याय सूक्ष्म तथा अल्पकालस्थायी होती है और व्यञ्जन-पर्याय स्थूल तथा चिरकाल-स्थायी । बन्धहीन शुद्ध पदार्थों में अर्थ-पर्याय ही उपलब्ध होती है परन्तु बन्ध को प्राप्त अशुद्ध पदार्थों में अर्थ व व्यञ्जन दोनों । जीव की परिस्पन्दन-क्रिया को 'योग' और भावात्मक-पर्याय को 'उपयोग' कहते हैं। योग तो मात्र जीव-प्रदेशों का परिस्पन्दन है और 'उपयोग' जानने देखने रूप अथवा राग द्वेषादि रूप उसका अन्तरंग भाव है । पुद्गल की परिस्पन्दनक्रिया स्कन्ध का बनना बिगड़ना अथवा आकृति बदलना है और भावात्मक पर्याय रस रूप आदि है। ___ पुद्गल द्रव्यात्मक पदार्थ है और जीव भावात्मक । अत: पुद्गल की क्रिया या पर्याय को 'द्रव्य कर्म' और जीव की क्रिया या पर्याय को 'भाव कर्म' कहते हैं। इतना कुछ जाने बिना कर्म सिद्धांत का समझना असम्भव है, इसीलिए प्रकृत विषय चालू करने से पहले इतनी भूमिका बनानी पड़ी है। २. कर्म सामान्य अब विचारना यह है कि कर्म क्या चीज है। वैशेषिक दर्शन ने 'कर्म' को एक पदार्थ स्वीकार किया है, जिसका लक्षण गमनागमन, संकोच विस्तार, उन्मेष निमेष, अवक्षेपण उत्क्षेपण आदि क्रिया है। इसे ही यहाँ पुद्गल या शरीर में होने वाली द्रव्यात्मक क्रिया कहा गया है। परन्तु जैन लोग इससे भी कुछ आगे बढ़कर कर्म शब्द का व्यापक लक्षण करते हैं। कर्म का अर्थ 'कार्य' है, वह द्रव्यात्मक हो या भावात्मक, परिस्पन्दन रूप हो या परिणमन रूप, क्रिया रूप हो या

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