________________
७.कारण-कार्य सम्बन्ध
कर्म सिद्धान्त कभी दुःख न होता। इससे जाना जाता है कि मूर्तीक पुद्गल में अवश्य ही अमूर्तीक जीव के भावों को आकर्षित करने की सामर्थ्य विद्यमान है। इसी प्रकार स्त्री पुत्रादि चेतन पदार्थों के साथ भी आपका निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध अवश्य है, अन्यथा उनके दुःख में दुःखी और सुख में सुखी आप कैसे होते। किसी भी क्रोधी व्यक्ति को देखकर आप में भय और वीतरागी को देखकर स्वाभाविक प्रेम व भक्ति क्यों होते। इससे जाना जाता है कि जीव का भी जीव के भावों के साथ सम्बन्ध अवश्य है। ...
__इस प्रकार पुद्गल का जीव के भावों पर और अन्य जीव का अन्य जीव के भावों पर प्रभाव या निमित्त-नैमित्तिक भाव स्पष्ट है। परन्तु जीव के चेतन तथा अमूर्तिक भावों का जड़ तथा मूर्तिक पुद्गल पर प्रभाव कैसे सम्भव हो सकता है, यह प्रश्न है; अर्थात् जीव के भाव मात्र से जड़ वर्गणायें कैसे आकृष्ट हो सकती हैं, यह । प्रश्न है। आज के वैज्ञानिक युग में इसकी सिद्धि भी कठिन नहीं है। आगमोक्त इन्द्रजाल विद्या तथा गारुडी विद्या के द्वारा जीव अपने अमूर्तीक भावों के द्वारा चित्र-विचित्र आश्चर्यकारी दृश्य दिखा सकता था, बे मौसम वृक्ष लगा सकता था तथा फूल खिला सकता था, और दूर देशस्थ अदृष्ट सर्प को पकड़कर बुला सकता था। मोहिनी विद्या के द्वारा भाव मात्र से किसी जीव को मच्छित कर देना तथा उच्चाटन, वशीकरण, रोग-प्रशमन आदि चित्र-विचित्र कार्य करना भारत में प्राचीन काल से आज तक प्रसिद्ध चले आ रहे हैं। भले ही आज वह विद्या लुप्तवत् हो गई हो, परन्तु श्रुतियों से तथा दन्त-कथाओं से उनकी सत्यता सिद्ध होती है, क्योंकि श्रुतियाँ सर्वथा मिथ्या नहीं होतीं, उनमें कुछ न कुछ सत्य अवश्य होता है। आज के हिप्नोटिज़म विज्ञान में भी जीव अपने भावों मात्र की सामर्थ्य से किसी दूर देशस्थ जड़ वस्तु को अपने पास मंगा लेता है, अथवा पास वाली वस्तु को दूर भेज देता है, अथवा मनुष्यादि को मूछित कर देता है, उनके मुखसे जो चाहे कहला देता है, उनके शरीर को पृथ्वी से ऊपर अधर आकाश में टिका देता है इत्यादि । यद्यपि इस प्रकार के खेल नकलची बाजीगर भी दिखाते फिरते हैं परन्तु उनकी यहाँ बात नहीं है । हिप्नोटिज़म के विशेषज्ञ बिना किसी धोखेबाजी के यह सब कुछ करने को समर्थ हैं।
इसके अतिरिक्त भी अनेकों दृष्टान्त ऐसे देखने सुनने को या समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलते हैं जिन पर से एक जीव के भाव का दूसरे जीव के भाव पर प्रभाव पड़ना सिद्ध हो जाता है। दृढ़ प्रेम के बन्धन में बद्ध दूर देशस्थ दो पृथक्-पृथक् व्यक्तियों के बीच परस्पर ऐसा घनिष्ट सम्बन्ध कदाचित् पाया जाता है कि एक के याद करने पर अथवा किसी भी संकट में पड़ जाने पर, तत्क्षण स्वत: या स्वप्नादि के द्वारा दूसरे को ऐसी प्रतीति हो जाती है, जिससे कि उसे स्पष्ट पता चल जाये कि दूर देशस्थ उसका वह प्रेमी मित्र या बन्धु-बान्धव उस समय उसे याद कर रहा है या उससे मिलने को चल पड़ा है या किसी संकट में फंस गया है। अगले ही दिन पत्र या टेलीफोन