Book Title: Karma Siddhanta
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 33
________________ ५. बन्ध परिचय १. बन्ध वैशिष्ट्य, २. जीव-पुद्गल बन्ध, ३. कथंचित् मूर्तिमत्त्व, ४. पंचविध शरीर। - १. बन्ध वैशिष्ट्य-पुद्गल परमाणुओं से पुद्गल परमाणुओं का बन्ध होने से सूक्ष्म स्कन्धरूप पंच वर्गणाओं की उत्पत्ति, और जीव प्रदेशों के साथ उन वर्गणाओं के बन्ध से शरीरों की उत्पत्ति अथवा अन्य सूक्ष्म स्थूल-स्कन्धों की उत्पत्ति कह दी गई। यहाँ बन्धको बालू के कणों की भाँति संयोग अथवा सम्पर्क मात्र न समझना । संयोग व बन्ध में महान् अन्तर है। रज कणों की भाँति परस्पर में मिलकर भी पृथक्-पृथक रहना संयोग कहलाता है जो दो प्रकार का होता है-भिन्न क्षेत्रवर्ती और एक क्षेत्रवर्ती । रजकणों का संयोग भिन्न क्षेत्रवर्ती है, क्योंकि वे परस्पर एक दूसरे में अवगाह को प्राप्त न होकर पृथक्-पृथक् प्रदेशों पर स्थित रहते हैं। अनन्तों परमाणुओं का या सूक्ष्म स्कन्धों का या वर्गणाओं का संयोग एक क्षेत्रवर्ती है, क्योंकि ये परस्पर एक दूसरे में अवगाह को प्राप्त होकर एक ही प्रदेश में स्थित हो जाते हैं। एक क्षेत्रावगाह रूप से आकाश के एक ही क्षेत्र में रहने पर भी ये परस्पर बन्ध को प्राप्त हुए नहीं कहला सकते क्योंकि इस प्रकार उनका एक दूसरे के साथ कोई गाढ़ सम्बन्ध नहीं होने पाता। वे अब भी एक दूसरे से सर्वथा निरपेक्ष अपना-अपना स्वतन्त्र परिणमन या कार्य करते रहते हैं । उनमें केवल शुद्ध अर्थ पर्याय ही उपलब्ध होती है, अशुद्ध पर्याय नहीं, न ही उनकी कोई नई आकृति बन पाती है । आकाश के प्रत्येक प्रदेश पर जो इस प्रकार अनन्तों द्रव्य रह रहे हैं वे स्वतन्त्र सत्ता रखने के कारण परस्पर में बन्धे नहीं हैं। बन्ध में कुछ विशेषता होती है । मिल-जुलकर एकाकार अखण्ड रूप बन जाना बन्ध कहलाता है जो संश्लेष सम्बन्ध स्वरूप होता है। यह सम्बन्ध इतना घनिष्ट होता है कि बन्ध को प्राप्त मूल पदार्थ भले ही जड़ हो या चेतन अपने-अपने पृथक् पृथक् शुद्ध स्वरूप से च्युत होकर कोई विजातीय रूप धारण कर लेते हैं, जो न केवल शुद्ध परमाणु रूप होता है और न शुद्ध चेतनारूप । उदाहरण के रूप में ऑक्सीजन व हाईड्रोजन इन दो गैसों को ले लीजिये। दोनों वायु स्वरूप हैं और दोनों ही अग्नि को भड़काने की शक्ति रखती हैं, परन्तु परस्पर बन्ध को प्राप्त हो जाने पर न आक्सीजन रहती न हाइड्रोजन, एक तीसरा ही नया पदार्थ बन जाता है, अर्थात् जल बन जाता है, जिनमें अग्नि को भड़काने की बजाये उसे बुझाने की शक्ति है । ऐसे बन्धको संश्लेष बन्ध कहते हैं । समस्त रासायनिक प्रयोग का आधार यही बन्ध है । सोना तथा ताम्बा मिलकर एक अखण्ड पिण्ड बन जाता है जो न शुद्ध स्वर्ण है न शुद्ध ताम्बा । एक तीसरी विजातीय धात् बन जाती है । इसी प्रकार पीतल, काँसा आदि भी जानना।

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