Book Title: Karma Siddhanta
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ कर्म सिद्धान्त ३. पुद्गल परिचय दमक उत्पन्न होती है, इसलिए वे और भी अधिक सूक्ष्म हैं । कार्माण वर्गणा से जीवों के अष्टविध कर्मों का निर्माण होता है, जिनका कथन आगे किया जाने वाला है। कर्म नामक पदार्थ सूक्ष्म-सूक्ष्म है अत: उसकी कारणभूता यह वर्गणा भी अत्यन्त सूक्ष्म है। ये सभी प्रकार के स्कन्ध विभिन्न जातीय उन-उन वर्गणाओं के परस्पर में मिलने से उत्पन्न होते हैं। एक-एक वर्गणा से अनेक-अनेक जाति के स्कन्ध बनते हैं, जैसे कि आहारक-वर्गणा से पृथ्वी आदि सभी दृष्ट पदार्थों का निर्माण हुआ है। इस प्रकार एक जातीय होते हुए भी पुद्गल-परमाणु चित्र विचित्र रूप धारण कर लेता है, और यह सब स्वभाव से स्वत: होता है । इसके आगे घट पट आदि पदार्थ अवश्य मनुष्य आदि कर्ता की अपेक्षा रखते हैं। ये वर्गणायें लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर अनन्त-अनन्त स्थित हैं । अर्थात् सर्वत्र ठसाठस भरी हुई हैं। ४. शरीर-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति के, कीट पतंग आदि क्षुद्र जन्तुओं के, पशु पक्षी आदि तिर्यंचों के तथा मनुष्यों के जितने भी चित्र-विचित्र, जीवित मृत, स्थूल सूक्ष्म शरीर दिखाई देते हैं; उन सबका, देवों तथा नारकियों के दिव्य वैक्रियक-शरीरों का और तपस्वियों के कुछ विचित्र प्रकार के अदृष्ट योगज शरीरों का निर्माण आहारक वर्गणाका कार्य है । जैन दर्शन में पृथ्वी आदि भूतों को भी जीवों का शरीर स्वीकार किया गया है, अत: पत्थर, कोयला, ताम्बा, लकड़ी आदि जड़-पदार्थ भी अवश्य किसी न किसी जीव के शरीर हैं या रह चुके हैं । तात्पर्य यह है कि बिना जीव का संयोग हुए सूक्ष्म आहारक वर्गणा अकेली स्वयं इन स्थूल शरीरों या स्कन्धों का निर्माण नहीं कर सकती। इसलिए जितने कुछ भी स्थूल पदार्थ व्यवहार भूमि पर स्थित हैं वे सब आहारक वर्गणा के कार्यभूत जीवित या मृत शरीर हैं, अन्य कुछ नहीं। भाषा वर्गणाका अर्थ 'शब्द' सर्व परिचित है। मनो वर्गणाका कार्यभूत 'मन' संज्ञी जीवों में ही पाया जाता है। उनके शरीरों में हृदय स्थान पर सूक्ष्म-प्राणवाहिनी. नाड़ियों से निर्मित अष्टदल कमल के आकार वाली एक रचना होती है जो अत्यन्त सूक्ष्म होने से आज तक किसी भी यंत्र द्वारा देखी नहीं गई है। यही मन है, जो यद्यपि शरीरों में स्फूर्ति, क्रिया तथा कान्ति उत्पन्न करने का निमित्तभूत तैजस शरीर, तैजस वर्गणा का कार्य है। यह अत्यन्त सूक्ष्म होने से प्रत्यक्ष का विषय नहीं है । इन सबके भीतर तथा सबका मूल कारण एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म शरीर है जिसे कार्मण शरीर कहते हैं। यह अष्टकर्मों के संघातरूप होता है । अष्टकर्मों का कथन आगे आने वाला है। यह शरीर कार्मण वर्गणा का कार्य है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96