Book Title: Karma Siddhanta
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Jinendravarni Granthamala Panipat

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Page 22
________________ कर्म सिद्धान्त १० २. वस्तु स्वभाव भावरूपेण ही आता है द्रव्य या क्षेत्र-रूपेण नहीं। इसलिए जीव भावात्मक पदार्थ माना गया है। आगे कर्म का प्रकरण चलने पर द्रव्य-कर्म व भाव- कर्मका कथन आएगा, वहाँ पुद्गलात्मक कर्म का नाम द्रव्य-कर्म और जीवात्मक क्रोधादि भावों का नाम भाव-कर्म समझना चाहिए। यह बताने के लिए ही यह विभाग किया गया है। ६. पर्याय— वस्तु के द्रव्यात्मक व भावात्मक इन दोनों ही विभागों में कोई न कोई परिवर्तन स्वभाव से ही होता रहता है, यह बात पहिले द्रव्यत्वगुण की स्थापना करते हुए बताई जा चुकी है। इस परिवर्तन का अर्थ इतना ही है कि प्रतिक्षण उसमें नई अवस्था प्रकट होती रहती है और पुरानी अवस्था उसी में विलीन होती जाती है । उत्पन्न-ध्वंसी इन अवस्थाओं को वस्तु की 'पर्याय' कहते हैं। पर्याय बदलते रहते भी वस्तु वह की वह बनी रहती है, जैसे कि बालक से बूढ़ा हो जाने पर भी व्यक्ति वह का वह ही रहता है। जड़ से चेतन या चेतन से जड़ नहीं हो जाती जैसे कि बूढ़ा हो जाने पर वह देवदत्त से यज्ञदत्त नहीं हो जाता। जिसमें 'यह वही है' ऐसी प्रतीति होती है ऐसे स्थायी अंश को द्रव्य, और 'यह अब वह नहीं है' ऐसी परिवर्तनशील अवस्थावाले अंश को पर्याय कहते हैं I पर्याय दो प्रकार की होती है- द्रव्यात्मक और भावात्मक । उपरोक्त प्रकरण को ध्यान में रखकर विचार करें तो द्रव्यात्मक पर्याय क्षेत्रात्मक अर्थात् प्रदेश- सापेक्ष होती है, जब कि भावात्मक पर्याय गुण-सापेक्ष होती है । इसीलिये भाव - पर्याय को कहीं गुण- पर्याय भी कहा गया है । द्रव्य-पर्याय आकृति - सापेक्ष होने से व्यक्त होती है, इसलिये उसे व्यञ्जन- पर्याय कहते हैं, परन्तु भाव- पर्याय भीतरी परिणमन मात्र होने से अर्थ - पर्याय कहलाती है । अतः द्रव्य-पर्याय तथा व्यंजन- पर्याय एकार्थक हैं और भाव- पर्याय, गुण- पर्याय तथा अर्थ- पर्याय एकार्थक हैं । द्रव्य या व्यञ्जन-पर्याय बाह्य होने से स्थूल और भाव या अर्थ- पर्याय अन्तरंग होने से सूक्ष्म होती हैं। आकार परिवर्तन बहुत काल पश्चात् प्रतीति में आने से द्रव्य-पर्याय चिरकाल-स्थायी और भावों का परिवर्तन क्षण-क्षण प्रति प्रतीति में आने से भाव- पर्याय अल्पकाल - स्थायी होती हैं । हिलन डुलन रूप होने से द्रव्य-पर्याय का नाम 'क्रिया' ओर परिणमन रूप होने से अर्थ- पर्याय का नाम 'परिणमन' है। क्रिया तथा परिणमन दोनों ही दो-दो प्रकार के होते हैं— स्थूल तथा सूक्ष्म । स्थूल-क्रिया पूरे द्रव्य का गमनागमन तथा हिलन डुलन है, और सूक्ष्म- क्रिया उसके भीतरी प्रदेशों का गमनागमन तथा हिलन डुलन है । पहिली क्रिया को गति कहते हैं और दूसरी को परिस्पन्दन । गति बाहर में दिखाई देती है परन्तु परिस्पन्दन द्रव्य के प्रदेशों में भीतर ही भीतर होता है । गतिरूप स्थूल-क्रिया अनेक पदार्थों के संयोग वियोग में कारण है, क्योंकि बिना गमनागमन के वह असम्भव है । परिस्पन्दन रूप सूक्ष्म-क्रिया द्रव्यों की आकृति

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