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१२ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज की तिथि के विषय में अपने विचार छापे, जो 'जर्नल ऑफ बंगाल एशियाटिक सोसाइटी', २४ (१८५५) पृ. ३८५ n-, 'जर्नल ऑफ अमेरिकन ओरियन्टल सोसाइटी', ६ (१८६०) पृ० ५३०., 'जर्नल ऑफ बंगाल एशियाटिक सोसाइटी', ३०(१८६१) पृ. ३ n पर छापे । यह तीनों लेख यहाँ उपलब्ध नहीं हैं।
(४) जनरल कनिंघम ने 'आालाजिकल सर्वे रिपोर्ट', १ (वर्ष १८६१-६२ की रिपोर्ट छपी १८७१) परिशिष्ट-४, में समय निर्धारण के क्रम को आगे बढ़ाया।
(५) डॉ० भाउ दाजी ने १८६४ में 'जर्नल ऑफ बाम्बे ब्रांच ऑफ एशियाटिक सोसाइटी', ८, पृ. २४६ पर स्तम्भ के निर्माण की तिथि.पर अपने विचार रखे। इस लेख के कुछ अंश परिशिष्ट-१८ पर हैं।
(६) राजेन्द्र लाल मिश्रा ने 'जर्नल ऑफ बंगाल एशियाटिक सोसायटी' ४३ (१८७४) पृ० ३६८-३७२ पर शिलालेख के समय के विषय में विवेचना की, जो परिशिष्ट-१९ पर है।
(७) भगवानलाल इन्द्रजी पण्डित ने 'इण्डियन एण्टीक्वेरी', १० (१८८१), पर अपने १८७३ में लिये गये इम्प्रेसन के आधार पर अनुवाद छापा, जो परिशिष्ट५ पर है।
(८) जोन फेदफुल फ्लीट ने ‘कार्पस इन्स्क्रिप्शन इण्डिकेरम्', ३ (१९४२) में इस शिलालेख का अनुवाद छापा जो परिशिष्ट-८ पर है ।
(९) दिनेशचन्द्र सरकार ने 'सलेक्ट इन्स्क्रिप्शन्', १ (१९४२) में यह लेख छापा जो परिशिष्ट-८ पर है ।
___ (१०) राजबली पाण्डेय ने 'इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली', २८ (१९५२) में इस शिलालेख के कुछ शब्दों की विवेचना कर पास में अन्य मंदिर होने की पुष्टि की। यह परिशिष्ट-९ पर है।
(११) 'जैन शिलालेख संग्रह' २ (१९५२) में भी इस शिलालेख को छापा गया । देखें परिशिष्ट-१० ।
(१२) पं० बलभद्र जैन ने 'भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ' १ (१९७४) पर इस शिलालेख की विवेचना छापी, जो परिशिष्ट-११ पर है।।
(१३) देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर ने 'इस्कृिप्शन्स ऑफ द अर्ली गुप्त किंग्स' (१९८१) में इस लेख का अंग्रेजी अनुवाद छापा है । देखें, परिशिष्ट-१२, ।
(१४) परमेश्वरी लाल गुप्त ने प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख, २ (१९९९) में शिलालेख का हिन्दी अनुवाद छापा है, जो परिशिष्ट-१३ पर है।
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