Book Title: Kahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Idrani Jain

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Page 22
________________ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज १७ उत्कीर्ण हैं । दूसरे वर्ग की मूर्तियों में चार अलग-अलग जिनों की मूर्तियाँ हैं । शिलालेख के पञ्चेन्द्र शब्द से स्पष्ट है कि यह दूसरे वर्ग की चौमुखी प्रतिमा है । गुप्तकाल की केवल दो और सर्वतोभद्र प्रतिमायें ज्ञात हैं । ये दोनों सर्वतोभद्र प्रतिमायें दूसरे वर्ग की ही हैं । एक सर्वतोभद्र मूर्ति का वर्णन डॉ० तिवारी अपनी पुस्तक के पृष्ठ-५० पर इस प्रकार करते हैं 'पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा (बी. ६८) में एक जिन चौमुखी भी सुरक्षित है । गुप्तकालीन जिन चौमुखी का यह अकेला उदाहरण है । कुषाणकालीन चौमुखी मूर्ति के समान ही यहाँ भी केवल ऋषभ एवं पार्श्व की ही पहचान सम्भव है ।' स्पष्ट है कि शेष दो मूर्तियों की पहचान नहीं की जा सकती व कोई अनुमान भी वह विद्वान् लेखक नहीं लगा रहे हैं । एक अन्य गुप्तकालीन चौमुखी मूर्ति दिगम्बर जैन मंदिर भेलूपुर के संग्रहालय में रखी है । इसे प्रोफेसर सागरमल जैन ने अपनी पुस्तक 'पार्श्वनाथ जन्म भूमि मन्दिर वाराणसी का पुरातात्विक वैभव' में चतुर्थ शताब्दी का बताया है । मैंने अपने लेख 'पार्श्वनाथ की जन्मस्थली के इतिहास पर कुछ और विचार' जो 'भारतीय संस्कृति और साहित्य में तीर्थंकर पार्श्वनाथ', १९९९, वाराणसी पृ० ३८ पर छपा है. में इस सर्वतोभद्र प्रतिमा को कुमार गुप्त के राज्य काल की माना है एवं इसमें लांछन के आधार पर ऋषभ, पार्श्व, मल्ली एवं पद्म प्रभु की मूर्तियाँ पहचानी हैं । डॉ० तिवारी की पुस्तक के पृष्ठ १४९ में पूर्वमध्ययुगीन मूर्तियों का वर्णन करते समय लिखा है-'बिहार बंगाल की चौमुखी मूर्तियों में सभी जिनों के साथ स्वतंत्र लांछनों का उत्कीर्णन विशेष लोकप्रिय था। अन्य क्षेत्रों में सामान्यत: कुषाणकालीन चौमुखी मूर्तियों के समान केवल दो ही जिनों ऋषभ एवं पार्श्व की पहचान सम्भव है । चौमुखी मूर्तियों में ऋषभ और पार्श्व के अतिरिक्त अजित, सम्भव, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, नेमि, शान्ति और महावीर की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं।' प्रो० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं डॉ० शान्तिस्वरूप सिन्हा ने अपनी पुस्तक 'जैन कला तीर्थ देवगढ़' में पृ० ४१ पर लिखा है- 'गुप्तकाल में केवल ऋषभनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, पार्श्वनाथ एवं महावीर का ही निरूपण हुआ ।' इस सूची में भगवानलाल इन्द्रजी द्वारा बताये श्रा, शान्तिनाथ एवं श्री नेमिनाथ का नाम नहीं है। - जैन मूर्ति कला के विकास क्रम में पंचतीर्थी मूर्तियों का भी निर्माण हुआ । एक १४५१ ई० की पंचतीर्थी प्रतीमा मधुबन तेरह पंथी दिगम्बर जैन मंदिर में सुरक्षित है, जिसे प्रो० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं डॉ० शान्तिस्वरूप सिन्हा ने अपने अप्रकाशित लेख दिनांक-१२.०७.२००५ में पद्मप्रभ, चंद्रप्रभ, अरनाथ, नेमिनाथ व पार्श्वनाथ पहचाने हैं । इसी प्रकार कुछ पंचतीर्थियों में पंचबालयतियों की मूर्तियां उकेरी जाती हैं । जिनमें-वासुपुज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर होते हैं । भगवानलाल इन्द्र जी पण्डित ने यह भी कहा है कि इन्हीं पाँच सुविख्यात Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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