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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज शिलालेख में होता । स्तम्भ स्थापना जैसा विशाल एवं उस समय को देखते हुए बिरला कार्य करनेवाला मद्र दूसरे के मंदिर में अपनी मूर्तियाँ क्यों स्थापित करेगा; (४) ऐसी कोई परिपाटी जैनधर्म में नहीं है कि जितनी व जिन भगवानों की मूर्ति मंदिर में स्थापित हों उतनी या उन भगवानों की मूर्ति ही स्तम्भ पर स्थापित हों । मंदिर में स्थापित मर्तियों का प्रतीक या चिह्न स्तम्भ पर बनाने की परिपाटी भी जैनधर्म में नहीं है । बोध प्रतीक स्वरूप हंस अथवा शेर एवं शैव त्रिशूल अवश्य स्थापित करते हैं । देखें परिशिष्ट-८ । इन कारणों से मैं राजबली पाण्डेय के मत से असहमति प्रगट करते हुये कहना चाहता हूँ स्तम्भ की पाँच मूर्तियों का ही वर्णन स्तम्भ लेख में है । मन्दिर अवश्य स्तम्भ से पूर्व यहाँ मौजूद होगा । पास के दो मंदिर बुकनान ने देखे । हो सकता है वहाँ कई मंदिर हों । स्तम्भ के समक्ष अवश्य एक विशाल मंदिर होगा तभी इतना विशाल मानस्तम्भ बनवाया गया । उन मन्दिरों में से कुछ के अवशेष श्री पाण्डेय ने देखे । श्री राजबली पाण्डेय के बाद के लेखक-पण्डित बलभद्र, भण्डारकर एवं परमेश्वरी लाल-भी स्तम्भ की पाँच मूर्ति ही स्तम्भ में वर्णित पञ्चेद्रां मानते हैं ।
इस विषय में एक अन्य भ्रान्ति 'भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ' के भाग-१ चित्र ६० पर इस स्तम्भ के फोटो में है जिसके शीर्षक में लिखा है कि इस मानस्तम्भ के शीर्ष पर आठ जिन प्रतिमायें विराजमान हैं । वास्तव में शीर्ष पर चार एवं कुल पाँच प्रतिमायें ही स्तम्भ में विराजमान हैं । पण्डित बलभद्र स्वयं स्तम्भ के विवरणं में ५ प्रतिमायें ही बतायें हैं । इस प्रकार पुस्तक में चित्र के शीर्षक पर गलती से आठ की संख्या लिखी गई है।
स्तम्भ के शीर्ष के चार तीर्थंकरों की फोटो जो २००२ में भारतीय संरक्षण संस्थान की लखनऊ शाखा ने स्तम्भ के संरक्षण के समय लीं, वे उनके सौजन्य से संलग्न हैं-देखें चित्र २ से ६ । स्तम्भ के नीचे पार्श्वनाथ की मूर्ति की फोटो चित्र १ पर है । यह भी इन्हीं के सौजन्य से है ।
.. ८. स्तम्भ के शीर्ष पर खटी (१) प्रारम्भ में डॉ०. फ्रांसिस बुकनान ने लिखा है कि एक बड़ा छूटा जो किसी धातु का दिखता है, स्तम्भ के ऊपर ठोका हुआ है । आगे उन्होंने कहा कि सम्भवतः इस खूटे पर इसी धातु का कोई भाग सुशोभित था ।
(२) प्रिंसेप ने लिखा है कि सबसे ऊपर, धातु का एक खूटा है जिस पर अधिकतम सम्भावना है कि एक शेर बैठाया गया होगा जो बाद में नष्ट हो गया होगा। उसका कोई टुकड़ा भी सबूत के लिये शेष न रहा ।
(३) कनिंघम ने कहा है कि खूटे से स्पष्ट है कि स्तम्भ के ऊपर शेर अथवा
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