Book Title: Kahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Idrani Jain

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Page 31
________________ २६ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज भी काफी पूर्व से आरम्भ हो गया होगा, जिसके पुरातात्विक प्रमाण इस क्षेत्र की विस्तृत खुदाई से मिल सकते हैं । गुप्त काल में यह निर्माण प्रक्रिया आगे बढ़ी व एक स्तम्भ भी बनाया गया जो अभिलिखित है एवं अभी तक मौजूद है । इस स्तम्भ को १९वीं शताब्दी के प्रारम्भ में फ्रांसिस बुकनान ने खोजा एवं तब से अब तक यह स्तम्भ पुरातत्त्वविदों के आकर्षण का केन्द्र रहा है । यह अध्ययन इसी स्तम्भ के इतिहास को लेकर प्रारम्भ किया गया है । इस अध्ययन में निम्न निष्कर्ष निकालते हैं । तिलोयपण्णत्ति (ई० सन् ५४०-६०९) एवं महापुराण ( ई० सन् ८००-८४८), जिन की रचना इस स्तम्भ के निर्माण के बाद की है में पुष्पदन्त के दीक्षा एवं केवलज्ञान के स्थान का नाम 'पुष्पक वन' एवं 'पुष्प वन' लिखा है । मैंने शब्दों की विवेचना से इस लेख में यह बताने का प्रयत्न किया है कि 'पुष्पक वन' व पुष्प वन' 'ककुभ वन' का ही नाम है ' क्योंकि ककुभ का अर्थ हैं अर्जुन का पेड़, जिस पर अति सुन्दर पुष्प पल्लवित होता है। इस प्रकार यही ग्राम तिलोयपण्णत्ति एवं महापुराण में वर्णित पुष्पदन्त स्वामी के दीक्षा एवं केवलज्ञान का स्थान है । इस लेख में मैंने यह भी अनुमान प्रगट किया है कि निर्माण के समय स्तम्भ के आस-पास फर्श इतना नीचा था कि चौकोर भाग की ऊँचाई ९ फुट थी । यह फर्स नीचा करना स्तम्भ की शोभा एवं सुरक्षा के लिये आवश्यक है । स्तम्भ के पास का गर (तालाब) मद्र के समय से ही पक्की बावरी थी जो स्तम्भ की शोभा बढ़ा रही थी । इस पक्की बावरी का पुनः निर्माण इस स्थल की शोभा में चार चाँद लगा सकता है । इस स्तम्भ के शीर्ष पर एक लोहे की खूँटी है । मेरा मत है कि इस खूँटी पर एक मूल्यवान सोने का या किसी धातु पर सोने का पत्तर चढ़ा शिखर रहा है। मेरी धारणा है कि स्तम्भ पर उत्कीर्ण पाँच तीर्थंकर मूर्तियाँ ही शिलालेख में वर्णित पञ्चेन्द्रों हैं, नीचे पार्श्वनाथ हैं एवं ऊपर सर्वतोभद्र में पश्चिमी पहलू पर श्री आदिनाद स्वामी हैं। शेष तीन प्रतिमा लांछन या नाम के अभाव में पहचाने नहीं जा सकी हैं । परन्तु क्योंकि यह पुष्पदन्त स्वामी का तीर्थ है इस कारण इनमें पुष्पदन्त स्वामी की भी मूर्ति होगी । मैंने यह भी कहा है कि नवीन मंदिर के समक्ष कोई स्तूप रहा होगा जो प्रागैतिहासिक काल पुष्पदन्त स्वामी के दीक्षा अथवा / एवं केवलज्ञान स्थल पर बना होगा । से पास के विस्तृत खण्डहर अपने में बहुमूल्य ऐतिहासिक सामग्री दबाये हुये हैं जिनमें जैनधर्म एवं विशेष रूप से पुष्पदन्त स्वामी का इतिहास छिपा है । यह लेख आगे के अन्वेषण हेतु समर्पित है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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