Book Title: Kahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Idrani Jain

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Page 72
________________ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज स्तम्भ के मध्य में, बारह पंक्तियों में, उत्तर दिशा की ओर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है, जो इस प्रकार है १. यस्योपस्थानभूमिर्नृपतिशतशिरःपातवातावधूता २. गुप्तानां वंशजस्य प्रविसृतयशसस्तस्य सर्वोत्तमः । ३. राजेय शक्रोपमस्य क्षितिपशतपतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्ते ४. वर्षे त्रिंशद्दशकोत्तरकशततमें ज्येष्ठमासि प्रपन्ने । । १ । । ५. ख्यातेऽस्मिन् ग्रामरत्ने ककुभ इति जनैस्साधुसंसर्गपूते ६. पुत्रा यस्सोमिलस्य प्रचुरगुणनिधेर्भट्टिसोमो महात्मा ७. तत्सूनू रुद्रसोम (:) प्रथुलमतियशा व्याघ्र इत्यन्यसंज्ञो ८. मद्रस्तस्यात्मजोऽभूद् द्विजगुरुयतिषु प्रायशः प्रीतिमान् यः ।।२।। ६. पुण्यस्कन्धं स चक्रे जगदिदमखिलं संसरद्वीक्ष्य भीतो १०. श्रेयोऽर्थं भूतभूत्यै पथि नियमवातामर्हतामादिकर्तृन् ११. पर्चेन्द्रान्स्थापयित्वा धरणिधरमयान् सन्निखतस्ततो ऽयम् १२. शैलस्तम्भः सुचारुर्गिरिवरशिखराग्रोपमः कीर्त्तिकर्ता । । ३ । । (इस शिलालेख में, जो कि गुप्तकाल के १४१वे वर्ष का है, बताया गया है कि किसी मद्र नाम के व्यक्ति ने, जिसकी वंशावलि यहाँ उसके प्रपितामह सोमिल तक गिनायी है, अर्हन्तों (तीर्थंकरों) में मुख्य समझे जाने वाले, अर्थात् आदिनाथ, शन्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्व और महावीर, इन पाँचों की प्रतिमाओं की स्थापना करके इस स्तम्भ को खड़ा किया। लेख की ११वीं पंक्ति के 'पंचेन्द्रान्' शब्द का इन्हीं पाँच तीर्थकरों से मतलव है ।) - इण्डियन एण्टिक्वेरी, जिल्द १० पृष्ठ १२५ - १२६ - जैन- शिलालेख संग्रह, भाग २, पृष्ठ ५६ । स्तम्भ के ऊपर चौकी बनी हुई है। उसके ऊपर पाँच तीर्थंकरों - आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। ब्राह्मी लेख के अनुसार इस मानस्तम्भ का निर्माण एवं प्रतिष्ठा जैन धर्मानुयायी मद्र नामक एक ब्राह्मण ने गुप्त संवत् १४१ ( ई० सन् ४६० ) में सम्राट् स्कन्दगुप्त के काल में करायी थी । ६७ ग्रामीण लोग अज्ञानतावश उस मानस्तम्भ को 'भीमकी छड़ी' या 'भीमसेन की. लाट' कहते है और दही - सिन्दूर से इसकी पूजा करते हैं । इसके कारण नीचे के भी भाग में बनी हुई पार्श्वनाथ प्रतिमा काफी विरूप हो गयी है । १. ककुभ का अर्थ है, कटुज जाति के पुष्प, अर्जुन वृक्ष (हिन्दी विश्वकोष ) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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