________________
७२
कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज
अनुवाद सिद्धम्। जिसकी उपस्थान-भूमि शत नृपतियों के सिर झुकाने से उत्पन्न वायु से हिल उठती है, जिसका वंश गुप्त है, जिसका यश जगत्-विख्यात है, जो समृद्धि में सर्वोत्तम है, जो शक्रोपम (इन्द्र-तुल्य) है, जो शत क्षितिपति है उस स्कन्दगुप्त के शांन्ति (पूर्ण शासन के) वर्ष एक सौ एकतालीस का यह ज्येष्ठ मास । गाँव का यह रत्न ककुभ नाम से प्रख्यात है और साधु-संसर्ग से पवित्र है। इस ग्राम में सोमिल का पुत्र प्रचुर-गुणनिधि महात्मा भट्टिसोम हुआ। उसका पुत्र प्रथुल-मति और यशवाला रुद्रसोम हुआ, जिसे लोग व्याघ्र नाम से भी पुकारते थे। उसका पुत्र मद्र हुआ, वह ब्राह्मणों, गुरुजनों और साधु-संतों के प्रति श्रद्धाभाव रखता था। यह देखकर कि यह संसार सतत परिवर्तनशील है, भयभीत होकर उसने अपने लिए अधिकाधिक पुण्य बटोरने का प्रयास किया। (और) समस्त जगत् के हितार्थ अर्हत पद के आदि कर्ता पाँच इन्द्रो (जितेन्द्रों) की मूर्तियाँ उत्कीर्ण कराकर इस शैल-स्तम्भ को भूमि पर खड़ा किया जा हिमालय की चोटी की तरह दिखाई देता है।
टिप्पणी यह लेख उस शैल-स्तम्भ के स्थापना की घोषणा है, जिस पर वह अंकित है। इस स्तम्भ के शीर्ष पर एक तथा चौपहल तल के चारों ओर एक-एक तीर्थकर की प्रतिमा उत्कीर्ण है। ये हैं-आदिनाथ शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर।
इस लेख से ज्ञात होता है कि कहाँव ग्रम का, जहाँ यह स्तम्भ है, प्रचीन नाम कुकुभ था।
इस लेख की पंक्ति ३-४ में आये स्कन्दगुप्तस्य शान्ते वर्षे का तात्पर्य अनेक विद्वानों ने स्कन्दगुप्त के शान्त (मृत्यु) होने के पश्चात् अथवा स्कन्दगुप्त का (साम्राज्य) शान्त (समाप्त) होने पर लिया था और इसे उसके मृत्यूपरान्त अथवा उसके शासन के समाप्त होने के बाद का लेख अनुमान किया था। किन्तु भाऊ दाजी ने इसे स्कन्दगुप्त के शान्तिपूर्ण शासनकाल के अर्थ में ग्रहण किया और उसका अनुमोदन फ्लीट ने भी किया। यही अर्थ संगत भी है। इस लेख में अन्य कुछ ऐसा नहीं है, जिसकी किसी प्रकार की कोई विस्तृत चर्चा की जाय।
सन्दर्भ माण्टगोमरी मार्टीन ईस्टर्न इण्डिया, २ (१८२८), पृ० ३६६। जेम्स प्रिंसेप
जर्नल बंगाल एसियाटिक सोसाइटी, ७ (१८२८), पृ० ३७। फिट्ज एडवर्ड हाल जर्नल, अमेरिकन ओरियण्टल सोसाइटी, ६ (१८६०), पृ० ५३०।
जर्नल, बंगाल एसियाटिक सोसाइटी, ३० पृ० ३। कनिंगहम
आर्यालाजिकल सर्वे रिपोर्ट, १ (१८७१), पृ० ६३। भगवानलाल इन्द्रजी इण्डियन एण्टीक्वैरी, १० (१८८१), पृ० २२५ । फ्लीट
कार्पस इन्स्कृष्शनम् इण्डिकेरम् ३ पृ०६५। राजबली पाण्डेय इण्डियन हिस्ट्रारिकल क्वार्टरली, २८ (१६५२), पृ० २६८ । दिनेशचन्द्र सरकार सेलेक्ट इन्स्कृष्शन्स, पृ० २१६-१७।
इस्कृप्शन्स आव द अर्ली गुप्त किंग्स, पृ० ३०५-३०८ ।
भण्डारकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org