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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज
चौकी का अंकन है। इस स्तम्भ के शीर्ष पर एक तथा चौपहल के चारों ओर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा उत्कीर्णित है। जिसमें आदिनाथ, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ हैं। स्तम्भ के निचले भाग में आधार चौकी पर पार्श्वनाथ की मूर्ति का अंकन है।
__इस लेख की पंक्ति ३-४ में आये 'स्कंद गुप्त शांति वर्षे से स्पष्ट है कि अभिलेख के उटंकन के समय यानी ४६० ई. में स्कंदगुप्त का शासनकाल शांतिपूर्ण था। इससे यह ध्वनित होता है कि इस समय तक स्कंदगुप्त ने हूणों पर विजय प्राप्त कर ली थी, साथ ही अभिलेख द्वारा यह भी सूचित होता है कि इस समय तक अनेक राजा उनकी अधीनता ही नहीं स्वीकार करते थे वरन् उनके सामंत बम गये थे। स्तम्भ अभिलेख का महत्व इस तथ्य के लिए भी है कि गुप्त सम्राट वैष्णव होते हुए भी अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णु थे। विशेष रूप से यह क्षेत्र इस काल में जैन मतावलम्बी था। अभिलेश के द्वारा ‘ककुभ ग्राम' की महत्ता स्थापित होती है। चिर काल से यह ग्राम विद्वानों के लिए विख्यात था। अभिलेख के द्वारा इस काल के मानवीय संवेदना का ज्ञान भी होता है। मद्र की सर्वकल्याणकारी भावना के तहत ही इस स्तम्भ का स्थापन हुआ था। अध्ययन के द्वारा अभी और कई महत्वपूर्ण सूचनाएं आ सकती हैं, परंतु वर्तमान में स्तम्भ लेख असुरक्षित एवं उपेक्षित है। स्तम्भ पर दरारें दिखने लगी हैं और मूर्तियां भी खंडित हो रही है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गोखपुर मण्डल के अंतर्गत होने के बावजूद भी इस अभिलेख को गोरखपुर विश्वविद्यालय के परास्नातक पाठयक्रम में सम्मिलित नही किया गया है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि पुरातत्व विभाग एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय इस स्तम्भ लेख की सुरक्षा की व्यवस्था करे एंव अभिलेख को पाठ्यक्रमों में सम्मिलित कर, इसके व्यापक अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करे।
स्तम्भ लेख से थोड़ी ही दूरी पर एक आशुनिक जैन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण श्रीमती सोहनी देवी धर्मपतनी हरखचंद सेठी (तिनसुकिया, असम) ने करवाया है। जहां यह मंदिर स्थापित है, वहां अति प्राचीन जैन मंदिर था, परंतु कहांव ग्राम के निवासी इससे अनभिज्ञ थे और मंदिर के गर्भगृह में स्थित ५ फीट ऊंची स्लेटी रंग की जैन प्रतिमा को वे 'सोफा बाबा' कहकर पुकारते थे। मंदिर के संरक्षक भरत कुशवाहा के अनुसार बाद में विद्वानों के आगमन के फलस्वरूप मंदिर एवं मूर्ति की पहचान हो पायी और उसके द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर के शिलापट्ट के अनुसर जैन धर्म के तीर्थंकर पुष्पदंतनाथ को यहीं केवल्य ज्ञान प्राप्त
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