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२२ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज . जाते हैं एवं भीम जो अप्रतिम शक्ति के धारक माने जाते हैं, का नाम इस स्तम्भ से जोड़ा गया । बुकनान इस पर निर्मित लेख नहीं पढ़ पाये इस कारण वे अनुश्रुति पर ही निर्भर रहे । इस प्रकार अनुश्रुति, निर्माता के विषय में मौन है।
स्तम्भ का पहला अनुवाद प्रिंसेप ने किया, जिन्होंने लिखा 'अमिला के पुत्र भट्टि सोम के पुत्र रुद्र सोम (व्याघ्ररती) के पुत्र मद्र, जो हमेशा ब्राह्मणों, गुरुओं एवं यतियों के मित्र रहे, ने इस स्तम्भ को बनाया' । __जो अनुवाद भण्डारकर ने 'इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ अर्ली गुप्त किंग्स' में प्रस्तुत किया, उसमें भी है कि सोमिल के पुत्र भट्टि सोम के पुत्र रुद्र. सोम (व्याघ्र उपनाम) के पुत्र मद्र जो ब्राह्मनों, धर्मगुरुओं और साधुओं के प्रिय थे, ने यह स्तम्भं बनाया ।
परमेश्वरी लाल गुप्त ने हिन्दी में अनुवाद किया है-सोमिल के पुत्र भट्टि सोम के पुत्र रुद्र सोम (व्याघ्र) के पुत्र मद्र जो ब्राह्मनों, गुरुजनों और साधु-संतों के प्रति श्रद्धा भाव रखता था, ने इस स्तम्भ को बनवाया ।
प्रिंसेप ने भट्टि नाम से इलाहाबाद के स्तम्भ का संबन्ध जोड़ते हुए कहा है कि सम्भवतः यह वही भट्टि हों, जिन्होंने इलाहाबाद का स्तम्भ टीला भट्टि बनवाया या उनके परिवार के हों । यह परिवार चीफ मजिस्ट्रेट था एवं बहुत शक्तिशाली हो गया था व धनाढ्य भी था ।
भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ में मद्र को ब्राह्मण कहा है वह तदनुरूप ही स्तम्भ के पूर्व दिशा में नई बनी दीवार-जो लगभग सन् १९८६ में बनी है-में अंकित लेख में मद्र को ब्राह्मण कहा गया है । ब्राह्मण भी जैनधर्म को मानते थे व अब भी कुछ ब्राह्मण जैनधर्म मानते हैं । इस प्रकार मद्र ब्राह्मण हो तो आश्चर्य नहीं है ।
१०. स्तम्भ के आस-पास का पुरातत्व (१) स्तम्भ का चौक-फ्रांसिस बुकनान ने लिखा है कि यह स्तम्भ एक आयताकार क्षेत्र में खड़ा है जो ईटों की दीवार से घिरा है एवं सम्भवत: कुछ छोटीछोटी कोठरियाँ भी बनी हैं । इस चौक में एक कुआँ भी बना है।
लिस्टन ने लिखा है कि यह स्तम्भ आम के पेड़ के छोटे से झुरमुट में खड़ा है एवं पास में एक आम का पेड़ है।
जनरल कनिंघम ने उत्तर-पूर्व दिशा में एक पुराने कुएँ के चिह्न देखे जो कुआँ भरा जा चुका था । इन्होंने स्तम्भ के उत्तर में स्तम्भ के पास ही कुछ ढ़ेर देखे जिसमें कुछ भवन के खण्डहर दिखे ।
इससे विदित है कि यहाँ खण्डहर न केवल किसी आतताई ने किया अपित जो आतताई से बचा वह पिछले दो सौ वर्ष में प्राकृतिक ताकतों एवं मनुष्यों की क्रियाओं
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