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कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज ५ फुट ऊँचा है । उसके नीचे आठ पहल का भाग ६ फुट ३ इंच ऊँचा है । फिर चार पहलू वाला भाग केवल ४ फुट ऊँचा है । ऊपर के दोनों भागों के ऊँचाई के क्रम को आगे बढ़ाये तो चौकोर भाग लगभग ७ फुट ऊँचा होगा।
(७) स्तम्भ की चौड़ाई भी फर्श के पास लगभग २८" हो सकती है जो मौजूदा में केवल २२" है । जेमस फर्गुसन ने चुनार पत्थर के दूसरे स्तम्भों के अध्ययन के आधार पर लिखा है कि ऊँचाई एवं बेस पर मोटाई का अनुपात प्रायः १२ होता था। देखें, परिशिष्ट-१६ । इस प्रकार अनुमान लगाया जा सकता है कि चौकोर भाग दो हिस्सों में बना होगा-एक २८" चौड़ा जो मलवे में ढ़क गया व दूसरा २२" चौड़ा जो अब दीख रहा है।
- उपरोक्त सभी दृष्टि से चौकोर भाग लगभग ९ फुट ऊँचा होना चाहिए । यह ऊँचाई सुन्दरता, सुरक्षा एवं पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति की पवित्रता हेतु आवश्यक थी।
७. पञ्चेन्द्रा ईस्वी सन् १८८१ में भगवानलाल इन्द्रजी पण्डित ने 'इण्डियन अन्टीक्वेरी' में, सर्वप्रथम स्तम्भ की पाँचों मूर्तियों को आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्व व महावीर कहा है (देखें परिशिष्ट-५) । यह अनुमान ही बिना तर्क के विद्वान् लेखक चमन लाल जे. शाह ने अपनी पुस्तक 'जैनीज्म् इन नार्थ इण्डिया' लन्दन, १९३२, पृ० २०९; प्रो० .मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ने 'जैन प्रतिमा विज्ञान', वाराणसी, १९८१, पृ० ६९, एवं उसके बाद के सभी लेखकों ने जैसे परिशिष्ट ९,१०,११,१३ एवं १७ पर देखा जा सकता है, लिखा है । इस विषय में मेरी असहमति के तर्क निम्न प्रकार हैं
श्री भगवानलाल इन्द्र जी ने अपने लेख के अंतिम पैरा में लिखा है कि 'जैन अपने तीर्थंकरों को आदिकर्ता [ लिपि पा० आदिकंऋत्रिस् ] कहते हैं । आगे वे कहते हैं कि 'परन्तु उनमें से पाँच सुविख्यात हैं, उन्हें विशेष प्रिय हैं, जिनकी मूर्तियों को ही वो प्राय: अपने मंदिरों में स्थापित करते हैं। यह धारणा इन पाँच मूर्तियों के प्रत्यक्ष अध्ययन के आधार पर नहीं बनाई गई है, न ही कोई अन्य प्रमाण दिया गया है। जैनधर्म के मंदिरों के विषय में उन्होंने जो विचार प्रकट किया है उस पर गहन अध्ययन आवश्यक है।
वास्तव में इस स्तम्भ के ऊपर एक सर्वतोभद्रिका जिन मूर्ति (जिन चौमुखी) विराजमान है । डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी की पुस्तक 'जैन प्रतिमा विज्ञान' १९८१, पृ० १४९ में लिखा है-'जिन चौमुखी प्रतिमाओं को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है । पहले वर्ग में ऐसी मूर्तियाँ हैं जिनमें एक ही जिन की चार मूर्तियाँ
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