Book Title: Kahau Stambh evam Kshetriya Puratattv ki Khoj
Author(s): Satyendra Mohan Jain
Publisher: Idrani Jain

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Page 12
________________ कहाऊँ स्तम्भ एवं क्षेत्रीय पुरातत्व की खोज ११ एवं केवलज्ञान का दिन कार्तिक शुक्ल तृतीया है । इस कारण इन दोनों समय पर यह पुष्प पुष्पित न होगा । पण्डित बलभद्र का यह अनुमान है कि अर्जुन का वृक्ष दीक्षा समय पुष्पित था (इस कारण नाम पुष्पक वन हुआ) ठीक नहीं लगता है। ३. पुरातात्विक खोजों का वर्णन (१) सबसे पहले डॉ० फ्रान्सिस बुकनान (हमिलटन) ने १८०७ से प्रारम्भ कर सात वर्षों तक 'प्रेसीडेन्सी ऑफ बंगाल' के पुरातत्त्व का सर्वेक्षण किया । यह रिपोर्ट उन्होंने १८१६ में 'कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ईस्ट इण्डिया कम्पनी' को भेजी । इस रिपोर्ट के अंशों को मोनटगुमरी मार्टीन ने 'ईस्टर्न इण्डिया' में १८३८ में छापे । इस पुस्तक के सम्बन्धित अंश परिशिष्ट-१ पर हैं । (२) सन् १८३७ में श्री लिस्टन ने यह स्तम्भ देखा एवं इसका वर्णन प्रिंसेप को भेजा । उन्होंने इस शिलालेख का अनुवाद एवं श्री लिस्टन का यह पत्र ‘एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल' की १८३८ की रिपोर्ट में छापा, जिसके सम्बन्धित अंश परिशिष्ट-२ पर हैं। (३) जनरल कनिंघम ने १८६१-६२ में इस स्तम्भ को देखा एवं इसका वर्णन 'आयोलाजिकल सर्वे रिपोर्ट', १ में छापा, जिसके सम्बन्धित अंश की प्रति परिशिष्ट-४ पर है । इससे पहले २८५४ में वे इस शिलालेख की विवेचना छाप चुके थे । देखें परिशिष्ट-३ ।। ... (४) सन् १८७३ में भगवानलाल इन्द्रजी पण्डित ने स्तम्भ को देखा एवं वहाँ का वृत्तान्तं एवं शिलालेख का अनुवाद 'इण्डियन एण्टीक्वेरी' १८८१ में छापा, जिसके सम्बन्धित अंश परिशिष्ट-५ पर हैं। (५) श्री एच.बी.डब्ल्यू. गेरिक ने यह स्तम्भ १८८०-८१ में देखा । उनका वृतांत जनरल कनिंघम ने १८८०-८३ की रिपोर्ट में छापा जो परिशिष्ट-६ पर है। ___(६) सन् १९७४ में पण्डित बलभद्र ने इस स्तम्भ को देखा व इसका वर्णन एवं फोटो 'भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ' प्रथम भाग में छापी, जो परिशिष्ट-६ पर है। ४. शिलालेख का अध्ययन (१) सबसे पहले प्रिंसेप ने इस लेख का अनुवाद १८३८ में किया जो परिशिष्ट-२ पर है। (२) जनरल कनिंघम में इस लेख के समय के विषय में अपने विचार १८५४ में 'दी भिलसा टोप्स' में छापे । इसकी प्रति परिशिष्ट-३ पर है । (३) प्रोफेसर फ़िट्ज़ एडवर्ड हाल ने १८५५, १८५९, १८६१ में इस लेख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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