Book Title: Kadambari
Author(s): Banbhatt Mahakavi, Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 8
________________ कथांशानां व्यवच्छेद आश्वास इति बद्धघते । आर्यावक्त्राऽपवक्त्राणां छन्दसा येन केनचित् ॥६-३३५ ॥ अर्थात् आख्यायिका कथाकी सदृश होती है, भेद ये हैं कि इसमें कविके कुलका वर्णन रहता है, और अन्य कवियोंका मी चरित्र वर्णित होता है तथा कहीं-कहीं पद्य भी रहता है। कथाके अंशोंका परिच्छेद "आश्वास" नामसे निबद्ध होता है। आर्या, वक्त्र और अपवक्त्र इन छन्दोंके मध्यमें जिस किसी भी छन्दसे भिन्न विषयके वर्णनके बहानेसे आश्वासके आदि भागमें आनेवाले विषयकी सूचना होती है। इसका उदाहरण है हर्षचरित। इसी तरह पञ्चतन्त्र, हितोपदेश, पुरुषपरीक्षा आदि ग्रन्थोंका आख्यायिकामें अन्तर्भाव करना चाहिए। अब प्रकृत विषयमें कुछ कहना चाहते हैं। संस्कृतके गद्यकाव्योंमें तीन कवि 'अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, वे हैं दण्डी, सुबन्धु और बाणभट्ट । यद्यपि इनके समयमें विद्वानोंका पर्याप्त मतभेद है तथाऽपि हम बहुमतके आधारपर कुछ लिखते हैं । दण्डी बहुतसे विद्वानोंके मतमें सबसे प्राचीन गद्यकाव्यके कवि दण्डी हैं। संभवतः उन्होंने पद्यकाव्यकी भी रचना की होगी। "कविर्दण्डी कविण्डो कविर्दण्डी न संशयः।" इत्यादि उक्तियां दण्डीके कवित्वका प्रतिपादन करती हैं। इसी तरह "जाते जगति वाल्मीको कविरित्यभिधाभवत् । कवी इति ततो व्यासे, कवयस्त्वयि दण्डिनि॥" अर्थात् कोई सहृदय विद्वान् कहते हैं कि जगत्में वाल्मीकिके प्रादुर्भूत होनेपर उनके लिए "कवि" ऐसी संज्ञा हुई, अनन्तर व्यासके प्रादुर्भूत होनेपर उन्हें भी यह संज्ञा उपलब्ध हुई। हे कविराज दण्डिन् ! आपके प्रादुर्भूत होनेपर वह संज्ञा आपको भी प्राप्त हो गई, इ कवि हो गये हैं। इसी तरह दण्डीकी रचनाओंके विषयमें "बृहच्छाङ्गघर-पद्धति' में कविराज राजशेखरके नामसे यह पद्य है "अयोग्नयस्त्रयो देवास्त्रयो वेदास्त्रयो गुणाः। __ प्रयो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः ॥" अर्थात् दक्षिणाग्नि, गार्हपत्य और आहवनीय ये तीन अग्निदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ये तीन देव, ऋक, यजुः और साम ये तीन वेद, सत्त्व, रज और तम ये तीन गुण इसी प्रकार दण्डी कविके तीन प्रबन्ध स्वर्ग, मर्त्य ( लोक ) और पाताल तोन लोकोंमें विख्यात हैं। इनमें एक तो गद्यकाव्य कथाके रूपमें प्रसिद्ध दशकुमारचरित है, और दूसरा काध्यका लक्षण-ग्रन्थ काव्यादर्श माना जाता है। परन्तु तीसरे प्रबन्धके विषयमें पर्याप्त मतभेद है। कोई "छन्दोविचिति" नामका ग्रन्थ जो संभवतः छन्दोंका लक्षण होगा उसे मानते हैं, कोई "अवन्तिसुन्दरी कथा" जो अपूर्ण है, उसे मानते हैं तो कोई "मुकुटताडितक" नामक ग्रन्थको मानते हैं जो संभवतः नाटक है। दण्डीने आन्ध्र, और चोल देशोंका, काबेरी नदीका और काञ्चीके पल्लवगणोंका उल्लेख किया है तथा वैदी रीतिकी प्रशंसा भी की है इससे अनुमान होता है कि वे दाक्षिणात्य थे। इसी तरह ___ "लक्ष्म लक्ष्मों तनोतीति प्रतोतं सुभगं वचः।" काव्या० १-४५ । अर्थात् लक्ष्म ( चिह्न) लक्ष्मी ( शोभा ) का विस्तार करता है यह मनोहर वचन प्रतीत होता है। कहना नहीं पड़ेगा कि यह वचन महाकवि कालिदासके "मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मों तनोति ।" ( १-१७)

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