Book Title: Jivvichar Author(s): Shantisuri, Vrajlal Pandit Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * जीव विचार. * हिन्दी भाषानुवाद सहित. "बिना किसी विघ्न के इस ग्रन्थके बनानेका काम पूरा हो जाय इसलिये ग्रन्थकार मङ्गलाचरण करते हैं" । भुत्रणपत्रं वीरं, नामऊण भणामि अबुहबोहत्थं । जीवसरूवं किंचिवि, जह भणियं पुव्वसूरीहिं ॥ १ ॥ (भुवईचं ) संमार में दीपक के समान, (वीरं) भगवान् महावीर को, (नमिऊण) नमस्कार करके, (अबोहत्थं) अज्ञलोगोंको ज्ञान कराने के लिये, (पुण्वसूरीहिं) पुराने आचार्यों ने, (जहर्भाणियं) जैसा कहा है वैसा, (जीवसवं) जीवका स्वरूप, (किंचिचि) संक्षेपसे, (भणामि ) मैं कहता हूँ ॥ १ ॥ प्रश्न – जीवका स्वरूप जानने से क्या लाभ है ? उत्तर- उनको हम अपनी आत्मा के समान समझ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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