Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 190
________________ [ १७५ ] गणहरेण जंबुनामस्स परिसाए य (धम्मो) पकहिओ। तं सोऊण जंबुनामो विरागमग्गमस्सिओ वंदिऊण गुरुं विनवेइ - " सामि! तुभं अंतिए मया धम्मो सुओ, तं जाव अम्मापियरो आपुच्छामि ताव तुभं पायमूले अत्तणो हियमायरिस्सं।" भगवया भणियं-"किच्चमेयं भवियाणं।" __ तओ पणमिऊण पवहणमारूढो जंबुनामो आगयमग्गेण य पट्रिओ। पत्तो य नियगभवणं । अम्मापियरं कयप्पणामो भणइ "अम्मयाओ! मया अज सुहम्मसामिणो समीवे जिणोवएसो सुओ। तं इच्छं, जत्य जरामरणरोगसोगा नत्यि तं पदं गंतुमणो पव्वइस्सं । विसज्जेह में ।" तं च तस्स निच्छयवयणं सोऊण बाहसलिलपच्छाइज्जवयणाणि भणति__ "सुट्ट ते सुओ धम्मो, 'अम्ह पुण पुव्यपुरिसा अणेगे अरहंतसासणरया आसी, न य 'पव्वइय' त्ति सुणामो । अम्हे वि बई का धम्म सुणामो, न उण एसो निच्छओ समुप्पन्नपुन्यो । तुमे पुण को विसेसो अज्जेव उवलद्धो जओ भणसि 'पव्वयामि त्ति?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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