________________
[२३९]
लक्खरस -(लाक्षारस) लाख
का बनाया हुआ लाल
रस । लटुं-(लष्टम् ?) अच्छी तरह
रुचंति -- (रुन्धयन्तिकाम् ?).
शाली के तुष निकालने
वाली। रुचति-- (रौति) रोती है। रूवस्सित्तणेणं-- (रूपित्वेन).
सुन्दर रूपवाला होने से। रूवोवलद्धि - (रूपोपलब्धिः )
रूप की पहिचान । रेवतउज्जाणे- (रैवतोद्याने)
गिरनार के उद्यान में [ देखो ‘भ, म. नी धर्मकथाभो'
टि. २, क. ५। रोएमि -(रोचे) रुचि करता
लभे- (लभेत) प्राप्त करें । लयन्ता--(लान्तः) लेते हए । लयप्पहारे - (लताप्रहारः)
छडी, लाठी । लहुकरणजुत्तं० ---(लघुकरण
युक्तयोजितम् ) शीघ्र योजित किये हुए पुरुषों से जुता
हुआ । लिहंतो-(लिखन्) चित्रित
करता हुआ । लिंडणियर - देखो टि. २३.
क. १ । लुभए --- (लुभ्यते) लुब्ध
होता है। लुलियाए - (लुलितायाम् )
बीत गई है। रहेइ -(दे०) साफ करती
लइमयं-(लभितकम् ) लिया
लक्खण° - (लक्षण-व्यञ्जन
गुणोपेता) सामुद्रिक शास्त्र में कहे हुए शरीर के लक्षण
- शरीर पर निकले हुये तिल और मषा आदि व्यंजन-चिह्न और गुणों से युक्त ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org