Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 255
________________ [ २४० लेण - (लयन) पहाड में . खुदे हुए पत्थर के घरों में । लेस्लाहिं - देखो टि. २५. लोहएहि-(दे०) हाथी के बच्चे के साथ [तृतीया बहुवचन] । लोमहत्थगं- (लोमहस्तकम् ) रोमों का बना हुआ झाडू। वइत्तए - ( वदितुम् ) कहने के लिये। वक्खित्तस्य --- (व्याक्षिप्तस्य) व्याक्षिप्त का। वग्गूहि-(वाग्भिः ) वचनों से । वञ्चइ -(ब्रजति) जाता है। प्वच्छ -- (वृक्ष) पेड ।। वच्छे-(वक्षसि ) छाती में । वहिज्जासि -(वर्तथाः) [तू] वर्तन करना । वडो--(बडः; वृद्धः) वडा । वडावए -(वर्धापकः) बढाने वणकरेणु -( वनकरेणुविविध दत्तकजप्रसवघातः) जिस पर वन की हथानिओंने भनेक तरह से कमल के फूल का प्रहार दिया है, ऐसा । वत्तेज्जासि -(वर्तेथाः) वर्तन फरें। वस्थजुयल - देखो टि. ४०। वत्यवस्स- (वास्तव्यस्य) रहनेवाले का । वस्थारुहणं - (वस्त्रारोपणम् ) देव को कपडा चढाना । वन्नारुहणं - (वर्गारोपणम्) देव को रंग चढाना । चम्मिय -(वर्मित) आच्छादित किये हुए [कवच वाले] | वयह -(वदथ ) तुम कहते हो। क्या - (बजाः) दश हजार गायों का एक ब्रज होता वाला । वडि-(वृद्धिः) व्याज । वयासी-(भवादीत् ) बोला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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