Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 258
________________ [ २४३ ] विहाडेति - ( विघाटयति ) ___खोलती है। वीतीवइस्सइ - ( व्यतिवजि ध्यति) पार चला जायगा। वीससे ---(विश्वस्यात् ) विश्वास करें। °वीसंभटाणितो - (विश्रम्भ- स्थानीयः ) विश्वासपात्र । वीहिं -(वीथिम् । बाजार में। वूहइत्ता --(बंहयिता) पोषक। वेयमारिय- ( वेदम्-आर्यम) आर्य वेद; जिसमें हिंसा का विधान न हो ऐसा वेद । वेरपडिउलणत्ये -(दे० वैर. प्रतिकुञ्चनार्थम् ) वैर का बदला लेने के लिये । वेसमणाणि -- ( वैश्रमणानि ) __कुबेर की मूर्ति । वैसालीए - ( वैशाल्याम् ) वि. शाला नाम की नगरी में [ देखो 'भ, म. नी धर्म- कथाओ' के कोश में 'महावीर' शब्द ] । सइ ~~ (सदा) हमेशा । सइयाण – ( शतिकानाम् ) सौ का । सकमण्णहाकाउं-(शक्यम् अन्यथाकर्तुम् ) ऊलटा करने का शक्य । सखिहिणि -- ( सकिङ्किणीम् ) घुघरी के साथ । सगडवूहेणं - ( शक्टव्यूहेन ) शकट के आकार में सेना की व्यूहरचना । सगडीसागर्ड-(शकटीशाकटम्) छकडी और छकडे । सगेवेनं--(सगैवेयम् ) ग्रीवा से पकड के। सचिट्रेण -- ( सचेष्टेन) चेष्टा सहित, सावधानता से । सञ्चपक्खिकाए ---- ( सत्यपक्षि कया ) सत्य का पक्ष करने वालीने । सजीयेहि -( सजीवैः) प्रत्यंचा -दोरी सहित। सगियं - ( शनैः ) धीरे से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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