Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 226
________________ असंखयं -- ( असंस्कृतम् ) टूटने पर जिसका संस्कार न हो सके वैसा । असंखया - ( असंस्कृताः ) अच्छे संस्कार से रहित । [ २११ ] असोगाओ - ( अशोकाः ) शोकरहित । अहतं - ( अहतम् ) नहीं टूटा हुआ, अक्षत । महारातिणियाए - (यथारात्निकम्) रात्निक अर्थात् रत्न जैसा उत्तम - बढा आदमी । यथारात्निक अर्थात् बढे छोटे के क्रम से [ लिंगपरिवर्तन के लिये देखो टि. १६, क. १] 1 (अहिः इव) सर्प के अहि व - समान । अंगजणवयस्स --- ( अङ्गजनपदस्य ) अंगदेश का [ देखो 'भगवान महावीरनी धर्मकयाओ' का कोश ] | अंतराणि - ( अंतराणि ) दोष 1 Jain Education International ( अंतरावासे : ) बीच के मुकामों से 1 अंतरावासेहिं अंतेउर -- ( अंतःपुर - परिवारसंपरिश्रुतस्य ) अंतःपुर के परिवार से परिवृत ऐसा उसका | अंबाडितो - (दे० ) तिरस्कृत | अंसागएहिं - ( अंसागतैः ) कंघे तक आये हुए । आइक्खियं - ( पाली - आचिक्खितं, संस्कृत-आ+चक्ष्, आख्यातं) कहा हुआ । आइण्णा - ( आचीर्णा ) आचार में लाई हुई । आओसेज्जा - ( आक्रोशयेयम् ) आक्रोश करूं । आजीवियसमयंसि - (आजीविक - समये ) आजीविक पंथ के सिद्धांत में । आढायंति - ( आद्रियन्ते ) आदर करते हैं । भाणतो - ( माज्ञप्तः ) जिसको आज्ञा दी गई है, वह 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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