Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 239
________________ [ २२४ ] तणणाले आ - (तृणालिकाः) घास की पूलिका । तत्यमिय० -- (त्रस्तमृगप्रलय सरीसृपेषु) मृग, प्रलय [ एक प्रकार फा जंगली पशु] और सर्पो के त्रस्त होने पर । तत्था - (त्रस्ता) त्रास पाये ताते (तपा) उसगे। तामलित्तीनयरीते - ( ताम्र लिप्तिनगर्याम् ) बंगदेश की राजधानी में । तालुग्याडणि० -(तालोद्घाट नीविघाटितकपाट:) ताला खोल देने की विद्या से जिसने दरवज्जे खोल दिये तमाणाए- (तम् आज्ञया ) उसको आज्ञा से । तयावरणिजाणं - देखो टि. २६ क. १ तरच्छा-(तााः ) जंगली प्राणी, साप या घोडा । तल्लिच्छा --- (तल्लिप्साः ) उसको प्राप्त करने की इच्छावाले। तसिया -- (तसिता) क्लेश पाई हुई। तंवकुदृगसगासे -- (ताम्रकुट्टक- सकाशे) तांवा को कूटने वाले के पास से । तवियाओ--- (ताम्रिकाः) तांबे की। तालेजा-(ताडयेयम् ) ताडना करूं। तित्तिरि-(तित्तिरिम् ) तीतर को । तिीत-- (तृप्तिम् ) तृप्ति को । तियाणि - (त्रिकानि) जहां तीन रास्ते मिलते हैं वैसे स्थान । तुटीदाणं -(तुष्टिदानम् ) इनाम । तुयाट्टियन्वं - (त्वग्वर्तिव्यम् ?) करवट लेना, सो जाना। तूणेहिं - (तूणैः) बाणों से। तणं कालेणं० -देखो टि. ३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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