Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 241
________________ [ २१६ ] दीहियासु-(दीर्घिकासु) सीधी आकृति जैसा जिसका पीठनीकों में । भाग है। दुक्कुला-(दुष्कुला) दुष्ट कुल धण्णभरियं-(धान्यभरितम् ) वाली । अनाज से भरा हुआ । दुपयस्स- (द्विपदस्य) दो धण्णेसु-(धान्येषु ) धान्य । पैर वाला प्राणी का । धसत्ति- (घस इति) 'स' दुरहियासा - (दुरधिसह्या) अवाज करके । दुःसह । धिजाइओ- (द्विजातिकः) दुरुहंति-(दूरोहन्ति) ऊपर ब्राह्मण । जैन टीकाकार चडते हैं। ब्राह्मणों पर अरुचि बताने दूरा-(दुरात्) दूर से । के लिये इसका प्रतिरूप देउलानि--(देवकुलानि) देव . 'धिग्जातीयः' -भी बताते मंदिर । देसए -(देशकः) शिक्षा देने । धिति-(धृतिम् ) धैर्य । वाला । देसपंते --- ( देशप्रान्ते) देश के धोयमाणं - (धाव्यमानम् ) धुलवाना। सीमाभाग में । दोच्चंपि--(द्वितीयमपि) दूसरी नगरगुत्तिया - (नगरगोप्तकाः) दफे भी। नगर की रक्षा करनेवाले। धणसिरीए - । प्रनाश्रियाः) नगरनिदुमणाणि -(नगरधनश्री के पाद। निर्धमनानि) नगर के धणुपट्टा - (धनुःपत्राकृति- पाणी निकलने के मार्ग विशिष्टपृष्टः) धनुष्य की 'गटर' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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