Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 240
________________ [ २२५ ] शुणदुद्धलुद्धयाति --- (स्तनदुग्ध- लुब्धकानि) स्तन के दूध में लुब्ध । थणयं-(स्तनजम् ) दूध । थरहरइ - कांपती है। थभिणि --(स्तम्भिनीम् ) स्तब्ध कर देने की विद्या। थूणामंडवं- (स्थूणामण्डपम् ) ___कपडे से ढका हुआ मंडप। थेर-(स्थविर) वृद्ध । थोर- (स्थूल ) बडा । दाहवकंतीए-(दाहव्युत्क्रान्तिकः) दाहज्वरवाला। दाहामि -(दास्यामि) दूंगी। दाहिति - ( दास्यन्ति ) देंगे। दिण्णभइ०- (दत्तमृतिभक्त वेतनाः) जिनको तनख्वाह, खाना और रोजी दी गई दच्छिहिसि-(द्रक्ष्यसि) देखेगी। दद्दरएणं-(दर्दरेण ) पछाडने दलयइ - (ददाति) देता है, ____डालता है। दसपरिणाहे-(दशपरिणाहः) दश हाथ चौडा। दडणाण-दखा टि. ३५। दाय - (दायम् ) पर्व के दिवस में देने का दान । दासी-(भदात्) दिया। दिणेस-दियहाण - (दिनेश दिवसानाम् ) सूर्य और दिन के बीच में । दिण्णो -- (दत्तः) दिया । दिय - (द्विजः ) ब्राह्मण । दिया - (दिवा) दिन में । दिव्वं - (दैवम् ) अदृष्टको । दिसालोयं - ( दिशालोकम् ) आसपास दिशाओं का देखना । दीविएणं-(दीप्तेन) जला हुआ (अग्नि से)। दीविया ---- (द्वीपिकाः) दीपडा। दहिया - (दीर्घिकाः) एक प्रकार की वापी-वावली । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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