Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 248
________________ [२३३ ] पिहेइ - (पिदधाति) ढकता पासत्थेहि - (पार्थस्यैः) पास ___ में रहेनेवालोंने । पासपयहिए-(पाशप्रवृत्तकान्) मोहादिपाश से प्रवृत्ति करते रासवणस्स -( प्रस्रवणस्य, प्रस्रवणाय ) लघुशंका के लिये। पासं-(पाशम् ) फंदेको । पासिहामि-(द्रक्ष्यामि) देखूगी। पासुत्तो-(प्रसुप्तः) सोया हुआ । पाहुई-(प्रामृतम्) भेट । पिइमेहमाइमेहे - (पितृमेध मातृमेधे) पितृमेध और मातृमेघ यज्ञ में । पिज --(प्रेय) प्रेम। पिटओवराहे-(पृष्ठतः वराहः) पीठ से वराह जैसा । पिटंडीपंडुरे - (पिष्टपिण्डीपाण्डु रान्) चावल के भाटे की पिण्डी के समान श्वेत । पिहडए -- (पिठरकान्) एक प्रकार के पात्र । पिंडियाओ-(पिण्डिकाः) बलि। पीढफलग-(पीठफलफ) पीठ पीछे रखने का पाटिया । पीणाइय - (दे०) टीका कारने इसके स्थान में पैनायिक' (पीनाया) शब्द रक्खा है और उसका पर्याय देश्य 'महा' दिया हैं। 'महा' का अर्थ बलात्कार होता है । गुजराती में बलात्कार के अर्थ में जो ‘पराणे' शब्द है, उसका संबंध इस 'पीणाइय' शब्द से मालूम होता है। पीसंतिय - (पेषयन्तिकाम् ). पीसनेवाली । पुढए-(पुटकान् ) पुडिया ।। पुत्तपञ्चयं-- (पुत्रप्रत्ययम् ) पुत्रनिमित्तक । पुष्फञ्चणियं --(पुष्पार्च निकाम्) पुष्पपूजाको। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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