Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 246
________________ [ २३१ ] पल्ला -- (पल्यानि) अनाज भरने के भाजन । पवरगोण° --(प्रवरगोयुषकैः) उत्तम जवान बेलों से। पवाणि-(प्रपाः) परर्वे-प्याऊ । पविट्रो-(प्रविष्टः) वडगया परियत्तेति-(परिवर्तयति) बार- बार धूमाता है । परियागते-(पर्यायागतान् ) कम से बढे हुए । परिवेसतियं - (परिवेषयन्ति काम् ) परोसनेवाली । परिसडियतोरणवरे - (परि शटिततोरणगृहम् ) जहां पुराणे तोरण और घर के टुफडे पडे है। परिसोसिय० ---(परिशोषित. तस्वरशिखरमीमतरदर्शनीये) जिससे बडे बडे पेड की टोच सूक गई हो और जो देखने में भयानक लगता है। पललिए-(प्रललितः) क्रीडाप्रिया पलवलंयोदरा-(प्रलम्बलम्बो दराधस्करः) जिसके उदर, ओंठ, और सूंड लंबे है। पलिच्छन्ने - (परिच्छन्नः) आच्छादित । पललेसु-(पल्वनेषु) छोटा सा तालाब । पसवेसु-(प्रसवेषु) पुत्रादि जन्मप्रसंगो में । पसातेणं-(प्रसादेन) कृपासे । पसाहणघरएसु - (प्रसाधन गृहेषु) सजावट करने के घरों में। पसिणाति -(प्रश्नाः) प्रश्न । पसुमेहे-(पशुमेधे) पशुमेघ यज्ञ । पहारेथ - देखो टि. २९, पहुप्पति-(प्रभवति ) समर्थ होता है । पचमहव्यएसु-देखो टि. ३२। पंडरसुवि० ---(पाण्डुर-सुविशुद्ध स्निग्ध-निरुपहत- विशतिनखः) जिसके चीसो नख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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