Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 250
________________ [ २३५ ] ढूंसट्स के रहने की रीति से। बोल -(दे०)[5] आवाज । भती- (मृतिः) वेतन, बहुकण्ठसुत्तधारी --- (बहुकण्ठ सूत्रधारी) कंठ में यज्ञो पवीत-जनेऊ पहननेवाला। बहुलोहणिजा-(बहुलोभनीयाः) __ अधिक लुभानेवाले। वंधेउं - (वद्धुम् ) यांधने के लिये । वारवइए - (द्वारवत्याम् ) द्वारिका में [देखो 'भ. म. नी कथाओं' का टिप्पण] | वालग्गाही-(बालग्राही) बालक को खेलानेवाला-रखने- वाला । वाहसलिल'- (वाष्पसलिल- प्रच्छादित-वदनानि) जिनके मुंख अश्रुजल से ढके हुये है। वाहिरपेसणकारिं - (बाह्य प्रेषणकारिकाम् ) बहार का लाना ले जाना करनेवाली। विउणो- (द्विगुणः) दूना । बिलधम्मेणं- (विलधर्मेण) जैसे दिल में अनेक मकोडे रहते हैं उसी तरह भत्तपरिव्वयं-(भक्तपरिव्ययम्) खानेपीने का खर्च । भंडागारिणि-(भाण्डागारिणीम् ) भांडार की व्यवस्था करने वाली । भाइणेज - ( भागिनेय ) भाणजा । भायं - (भागम् ) मंदिर में देने का नियत अंश । भारुण्डपक्खी--(भारण्डपक्षी) एक तरह का अप्रमत्त. पक्षी । ऐसा कहा जाता है कि उसके दो मुख एक शरीर और तीन पैर होते हैं । भासियवं-- (भाषितवान् ) बोला। भे-(युष्माकम् ) तुम्हारा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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