Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 251
________________ [ २३६ ] मेष --- (भेद) दुद्धिमेद ! मइन्दो--(मृगेन्द्रः) सिंह । मइलिजन्तो-(मलिन्यमानः) मलिन होता हुआ। सगतितेहिं - (दे०) हाथ में येथे हुए। मगहापुरे--(मगधपुरे) मगध देश की राजधानी में । मय्यया-(मागिता) चाही सङ्गुली-(मङ्गला ) असुन्दर। मझमझेण- (मध्यमध्येन) वीचवीच में । महो- (दे०) छोटा । मणय -- (मनाक्) अल्प। मणामे - देखो टि. १८, मयवस° - (मदवश विकसत्कट तटश्लिनगन्धमदवारिणा ) जिसके द्वारा मद के वश से खिले हुए गडतट गिळे हो गये हैं, ऐसे गंधवाले मद के पानी से । मयंगतीरद्दहे--(मतङ्गतीरद्रह) मतंगतीर नाम का द्रह [विशेष के लिये देखो . भ. म. नी धर्मकथाओं का कोश] मरणभीइरं- (मरणभीरम् ) मरण से डरनेवाले को । मलायघंसी- (मलापध्वंसी) मल को नाश करनेवाला। मल्लसंपुडोह - (मल्लसंपुटैः ) शराव से, कोडिये से। मलाव्हणं - (माल्यारोपणम् ) देव को माला चडानी । महइमहालियाए - (महाति महत्यां) वही से वडी [सभा ] में । महणम्मि -(मथने) मथन करने में । सम्मणपयंपियाति - ( मन्मन- प्रजाल्पितानि) वालक के अन्यरत शब्द । मयगकिच्चाई -(मृतककृत्यानि) मृत व्यक्ति के पीछे किये जानेवाले कार्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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