Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 231
________________ [ २१६ ] ओसोवितस्स -(अवसुप्तस्य ) सोता हुआ । ओहतमण -- (अवहतमनः संकल्पः) जिसके मन का संकल्प टूट गया है | कइया - (क्रयिकाः) खरीद ___ करनेवाले । कओ-(कुतः) कहां से । कटु ---- ( कृत्वा) करके | कडयेसु-(कटकेषु) पर्वत के किनारों में । कप्पडिय - (कार्पटिकः ) भिक्षुक । कयवर-(कचवर) कूडा, मैला, कचरा। करंसुपाएहि -( कृताश्रुपातैः) आंसुओं के साथ । करगा - (करमाः) जल भरने का पात्र। करणसालं - (करणशालाम् ) कचहरी में अदालत में । करणे -(करणे) न्यायालय कचहरी में । करयलपरिमिय° - ( करतल परिमित - त्रिवलिकमभ्या) जिसका कटीभाग मुष्टिग्राह्य और त्रिवलीयुक्त है ऐसी स्त्री। करिसेण - (करीषेण) कंडेसे । कलहदलियं—(कलहदलिकाम् ) कलह का कण । कसघायसए-(कपघातशतानि) चाबुक के सौ प्रहार । कसप्पहारे - (कशप्रहारः) चाबुक से ताडन । कहाविसेसेण -(कथाविशेषण) विशेष प्रकार की बातचीत करते हुए। कहियं - (कुत्र) कहाँ । कंडितियं -(खण्डयन्तिकाम् ) . खांडनेवाली । कंपिलपुरे- देखो टि. ४३ । कंसदूस० ---- ( कांस्य-दूज्य विपुलधन-सत्सार- स्वापतेयस्य) कांसा, कपडे, विपुल धन, सारवाला - कीमती द्रव्य (गहने वगेरे)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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