Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 233
________________ [ २१८ ] चमकती हुई है कपोल पाली जिसकी । कुंदलोद्ध° - (कुन्दलोध्रउद्धत तुषारप्रचुरे) जिस ऋतु में कुंद और लोध्र वृक्ष उद्धत [पुष्पसमृद्ध ] होते हैं और तुषार-वर्फ अधिक पडती है, उस ऋतु में । फूणिए -(कोणिकः) [इस राजा के लिये देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओं का कोश । केयारं-(केदारम् ) क्यारी वदना) शरत् पूनम के चन्द्र जैसा प्रतिपूर्ण और सौम्य है मुख जिसका। कोला -(कोडाः) सूअर । कोसंबको - ( कौशाम्बिकः) कोशाम्बी का रहनेवाला । कोसंवीभो - ( कोशाम्बीतः ) कोशांबी से [ देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओ' का कोश] | HEEEEEEEEEEEEE " को । कोतिया - (फोकन्तिकाः ) लोमडी, लोकही। कोदृतियं - ( कुट्टयन्तिकाम् ) कूटनेवाली । कोडंवियपुरिसे - (कौटुंम्बिक- पुरुषान् ) काम के लिये] रखे हुए कुटुंब के भादमी [देखो ‘भ. म. नी धर्म- कथाओ' का कोश] । कोमुदिरयणियर- (कौमुदी रजनीकर-प्रतिपूर्ण-सौम्य खलयं-(खलकम् ) खला खलिहान । खंडिओ - (दे०) किल्ले के छिद्र अर्थात् क्षुद्रमार्ग । खंद - (स्कन्दः) कार्तिकेय । खाइयग्यो- (खादितव्यः) खाने के योग्य । खाणुएहि-(स्थाणुकैः) ₹ठों से, सूके पेडों से। खाति-(खादति) खाता है। खातिमसातिमं - ( खादिम स्वादिमम् ) फळमेवा इत्यादि और इलायची लौंग इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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