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चमकती हुई है कपोल
पाली जिसकी । कुंदलोद्ध° - (कुन्दलोध्रउद्धत
तुषारप्रचुरे) जिस ऋतु में कुंद और लोध्र वृक्ष उद्धत [पुष्पसमृद्ध ] होते हैं और तुषार-वर्फ अधिक पडती
है, उस ऋतु में । फूणिए -(कोणिकः) [इस
राजा के लिये देखो 'भ. म.
नी धर्मकथाओं का कोश । केयारं-(केदारम् ) क्यारी
वदना) शरत् पूनम के चन्द्र जैसा प्रतिपूर्ण और
सौम्य है मुख जिसका। कोला -(कोडाः) सूअर । कोसंबको - ( कौशाम्बिकः)
कोशाम्बी का रहनेवाला । कोसंवीभो - ( कोशाम्बीतः )
कोशांबी से [ देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओ' का कोश] |
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को ।
कोतिया - (फोकन्तिकाः )
लोमडी, लोकही। कोदृतियं - ( कुट्टयन्तिकाम् )
कूटनेवाली । कोडंवियपुरिसे - (कौटुंम्बिक-
पुरुषान् ) काम के लिये] रखे हुए कुटुंब के भादमी [देखो ‘भ. म. नी धर्म-
कथाओ' का कोश] । कोमुदिरयणियर- (कौमुदी
रजनीकर-प्रतिपूर्ण-सौम्य
खलयं-(खलकम् ) खला
खलिहान । खंडिओ - (दे०) किल्ले के
छिद्र अर्थात् क्षुद्रमार्ग । खंद - (स्कन्दः) कार्तिकेय । खाइयग्यो- (खादितव्यः) खाने
के योग्य । खाणुएहि-(स्थाणुकैः) ₹ठों
से, सूके पेडों से। खाति-(खादति) खाता है। खातिमसातिमं - ( खादिम
स्वादिमम् ) फळमेवा इत्यादि और इलायची लौंग इत्यादि ।
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