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________________ [ २१७ ] कायंजला -(कृतजला:) समुद्र के आसपास रहनेवाला पक्षीविशेष । कायसि -(काये) शरीर में कालकम्बली-कालकम्बलिका) काली कमली। कालधम्मुणा -- देखो टि. २४, किसिणिज्जन्ति --- (कृषण्यन्ते ) काले हो जाते हैं। किहं ---(कथम् ) कैसे; किस प्रकार से | कीलावण- ( क्रीडापन) . खेलाना । कीलावणगा--(क्रीडापनकानि) खिलोने । कंखिते-(कांक्षितः) उत्सुकता से फल की राह देखता हुआ । कुच्चएहि -(कूर्चेकः) फूची काहं --- (करिष्ये ) करूंगा। काहामो- (करिष्यामः) करेंगे । काहावणेणं ---- (कार्षापणेन) कार्षापण (सुवर्ण के एक सिक्के का नाम) से। काही--(करिष्यति) करेगा। किच्चइ-(कृत्यते) . दुःख पाता है। किणा - (केन) किस प्रकार से, किस हेतु से । किण्होभासा - (कृष्णावभासा) कुइए --- (कुडवाः) धान्य मापने का एक माप [विशेष के लिये देखो 'भ. म. नी धर्मकथाओ' का कोश ] । कुढएसु-(कुटकेषु) नीचे की ओर चौडे तथा ऊपर की ओर संकीर्ण, ऐसे पर्वतों के स्थानों में । कुंडलुलिहिय° -(कुण्डलोल्लि खितगण्डलेखा) कुंडल से काळे । कित्तिमो-(कृत्रिमः) बनावटी। कित्तिया-(कियन्तः) कितनेक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002742
Book TitleJinagam Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherKasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, Agam, & agam_related_other_literature
File Size9 MB
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