Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 236
________________ [ २२१] छुहछुहियं -- (क्षुधाक्षुधितः ) भूखा । छुहमारो- (क्षुधामारः) भुख मरा, दुकाल । छुहिओ-(मुधितः) जिसके उपर चूना लगाया गया है। छूढाणि ---(क्षिप्तानि ) डाले रखे। छोलेति - (दे० छल्ली छाल) छाल निकालती है। छगलो - (छागः ) यकरा । छज्जीवनिकाएसु-देखो टि.३३ । छणेसु - (क्षणेषु ) उत्सवों में। छटभत्तं--(पष्ठभकम् ) छ टंक भक्त-आहार-नहीं लेने का व्रत अर्थात् लगातार दो दिन वा उपवास । छविच्छेयं - (छविच्छेदम् ) चमडी को छेदना । छाणुझियं -(छगणोजिमकाम्) गोवर को फेंकनेवाली। छारुझियं-(क्षारोज्झिकाम् ) ___ राख को फेंकनेवाली । छारेण -(क्षारेण) राख से । छिनउ - (छिद्यताम् ) काटा जाय। छिप्पत्तरेणं - (दे० छिप्पत्तूर्येण) ___उस नाम के वाद्य से। छिय-(स्पृश) स्पर्श कर । छिवापहारे- (दे०) चीकना चाबुक का प्रहार । छिडिओ ---- (दे० छिण्डिका: - 'छिद्र' से) पाड के छिद्र -मार्ग । जग्गंनो - (जागृत्) जागता हुआ। जणप्पमहुणं- (जनप्रमर्दनम् ) मनुष्यों का कचरघाण । जणमारि - ( जनमारिम् ) मनुष्यों के नाशकों। जन्नवयणं - (यज्ञवचनम् ) यज्ञ शब्द । जप्पभिई - (यत्प्रभृति) जबसे । जम्बूलए -(जम्बूलकान् ) जांबून के आकार के जलपात्र विशेष, चंचू यानी सुराई । जयम्मि - (जगति) जगत में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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