Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 219
________________ [ २०४ ] और नवलेच्छकी (लिच्छवी) गणराजा चेटक के आज्ञाधारक थे। चेटकराजा हैहयवंश का था। उसकी सात कन्याएँ थी। उसकी ज्येष्टा नाम की लडकी भगवान महावीर के बड़े भाई नंदीवर्धन के साथ व्याही गई थी। वेहल्ल और कोणिक की माता चेलणा भी चेटक की लडकी थी। इसलिये चेटक, कोणिक और वेहल्ल का मातामह (नाना) होता था। चेटक की बहिन त्रिशला, भगवान महावीर की माता थी । चेटक के बारे में अधिक जानने के लिये पुरातत्त्व पु. १. पृष्ट २६३ का लेख देखना चाहिये ।। __ ५३. गणरायाणो -"गणराजानः"। गणराजा का अर्थ करते हुए भगवती के टीकाकार अमयदेव लिखते हैं " समुत्पन्ने प्रयोजने ये गणं कुर्वन्ति ते गणप्रधाना: राजानो गणराजा : सामन्ता इत्यर्थ :"। प्रयोजन होने पर जो मिल करके प्रवृत्ति करते हैं वे गणराजा कहे जाते हैं। टीकाकार ने उन्हें सामंत कहे हैं । . टीकाकार का यह अर्थ केवल शब्दार्थ मात्र हैं। गणराज्य का खास अर्थ तो 'समुदाय का राज्य' ऐसा होता है । ५४. रहमुसलं संगामं -"रथमुशलम् संग्रामम् - रथमुशल नाम का संग्राम" | भगवतीसूत्र के ७ वें शतक के ९ वें उद्देशक में रथमुशल संग्राम का वर्णन आता है । तदनुसार वह संग्राम वजी विदेहपुत्र और मल्लकी और लिच्छवी राजाओं के बीच में हुआ था। भगवतीसूत्र में 'रथमुशल' शब्द का अर्थ इस प्रकार बताया है। "घोडा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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