Book Title: Jinagam Katha Sangraha
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 223
________________ अज्झवसाणे - ( अध्यवसानेन ) अभिप्राय से । अट्टदुहट्टवसहमाणसगए - (भार्तदुःखार्त - वशार्त - मानसगतः ) आर्त नामक दुर्म्यान से पीडित और चंचल मन को पाया हुआ । भट्टालग dans [ २०८ ] ( अट्टालक) भटारी, झरोखा | अट्टगुणाए पड वाली से । (अष्टगुणया ) आठ अट्ठारसव के ( अष्टादशवक्रः ) जिसमें अठार वक्रिमाएँ होती हैं ऐसा हार | * अट्टिमुट्ठिजां° - ( अस्थि - मुष्टि - जानु - कूर्पर - प्रहार - संभग्न - मयित - गात्रम् ) हड्डी से, मुष्टि से, जानु से, कोहणी से प्रहार करके जिसका मात्र तोड दिया गया है और मोड दिया गया है Jain Education International ० अठ्ठीमीज - ( अस्थि-नजाप्रेमानुराग-रक्तः ) जैसा अस्थि और मज्जा में प्रेम है, वैसे प्रेम से अनुरक्त अड्डातिजाति - (अर्घद्वितीयानि) अढाई | अणइकमणिजे - ( अनतिक्रमणीयः ) कोई अतिक्रम नहीं करा सकता है ऐसा | अणयारो - ( अनगारः ) घरवार रहित, संन्यासी । अणुगिलति ( अनुगिलति ) निगल जाती 1 अणुट्टिए - ( अनुत्थिते ) उदय के पहिले । अणुपुन्व - ( अनुपूर्व - सुजात - वप्र - गंभीर - शीतलजल: ) जिसके वप्र-तट उत्तरोत्तर अच्छे हैं, और जिसमें गहरा एवं ठंडा जल है ऐसा | * शब्द के भागे का यह ० चिह्न ' आगे और समास है जो छोड दिया गया है' ऐसा सूचन करता है । उसकी संस्कृत छाया से उसका भान होवेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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