Book Title: Jignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Author(s): Vibha Upadhyaya and Others
Publisher: University of Rajasthan
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364 / Jijñāsā
45. ऋग्वेद की विदुषी नारियाँ
मधुलिका शर्मा
ऋग्वैदिक काल में समाज के उत्थान, उत्कर्ष, प्रेयस, एवं निःश्रेयस में पुरुष वर्ग तथा नारी वर्ग का योगदान समान रूप से रहा है। नारियों को भी अपनी शक्तियों को पूर्ण रूप से विकसित करने तथा बिना भेदभाव के समाज में आगे बढ़ने का अधिकार प्राप्त था। ऋग्वेद में वाशक्ति कहती है कि मैं जिसे चाहती हैं, उसे शक्तिशाली, ब्राह्मण, ऋषि या मेधवान् बना देती हूँ । अतएव ऋग्वैदिक समाज में बिना भेदभाव के सभी को वेद-ज्ञान में शिक्षित होकर आर्य बनने का अधिकार था। अथर्ववेद में भी स्त्रियों को यज्ञाधिकार एवं वेदाध्ययन का अधिकारी माना है। ऋग्वैदिक युग कृषि एवं परिवार संस्था के सुस्थापन का काल था । तत्कालीन भारतीयों ने पारिवारिक व सामाजिक विकास के अन्तर्गत नैसर्गिक तत्त्वों को समझकर पारिवारिक जीवन को विकसित किया था। बौद्धिक दृष्टि से उन्नत आर्यों ने न केवल नारियों को उचित स्थान प्रदान किया वरन् उनके साधना, सत्यता, सहनशीलता, सौम्यता, ममता, प्रेमादि सहज गुणों को सम्मान प्रदान किया। आर्यों का व्यष्टि व समष्टि का सम्बन्ध नैसर्गिक और वैज्ञानिक आधार पर निहित था। परिवार समाज का प्रथम घटक था। इसलिए संतति के संवर्द्धन में माता-पिता के परस्पर सहयोग, सहजीवन, पारस्परिक निष्ठा को अनिवार्य माना है। 'विदुषी नारी समाज' द्वारा रचित मन्त्रों के आधार पर ऋग्वैदिककालीन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप के दर्शन कर पाने में समर्थ हैं।
मंत्रदृष्टा ऋषियों के साथ ब्रह्मवादिनी ऋषिकाओं ने भी अन्तःस्फूर्त प्राकृतिक शक्तियों की प्रार्थना और उन प्राकृतिक शक्तियों से उत्पन्न सृष्टि और सृष्टि के गुण-कर्म को भावों में व्यक्त किया है। इन नारियों के माधुर्य पूर्ण काव्य मन्त्रों के दर्शन हमें ऋग्वेद में प्राप्त होते हैं। स्पष्टतः ऋषित्व पद वैदिक काल में स्त्रियों को भी प्राप्त था। शौनक ऋषि ने इन्हें 'ब्रह्मवादिनी' और 'ऋषि' कहा है।' आर्षानुक्रमणी में इन्हें मुनि सम्बोधित किया है।' ऋग्वेद में 'ऋषिका' पद का उल्लेख है। ऋषि शब्द का अर्थ, तत्त्वों में तपते हुए विकास की जो वृत्ति प्रवृत्त हुई वही प्राणरूप ऋषि है। ज्ञान के लिए जिनकी वृत्ति विकास को प्रवृत्त हुई वही ज्ञानी ऋषि या मंत्रदृष्टा कहलाये ऋग्वेद की ऋचाओं का साक्षात्कार करने वाली नारियों का उल्लेख शौनक ऋषि ने किया है।
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घोषा गोधा विश्ववारा अपालोपनिषनिषत् । ब्रह्मजाया जहूर्नाम अगस्त्यस्य स्वासादितिः ।। इन्द्राणी चेन्द्रमाता च सरमा रोमशोर्वशी । श्रीर्लाक्षा सार्पराज्ञी वाक् श्रद्धा मेधा च दक्षिणा । रात्री सूर्या व सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरिताः ।।